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सोमवार, 18 सितंबर 2023

लघु रुद्राभिषेक

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

☠️👻🚩 कलुआ का अढैया मारण मन्त्र 🚩👻☠️

         ☠️👻🚩 कलुआ का अढैया मारण मन्त्र 🚩👻☠️



काला कलुवा कपाल घाती _________ फोड़े कलेजा तोड़ छाती धोवे पीवे घड़ा रक्त का लिए ढ़ईया घड़ियाँ का करके स्यापा ।।


यह शाबर मंत्र की अढैया श्रेणी का मन्त्र है । इस मन्त्र पर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है - देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर ।


इस मन्त्र की सिद्धि 2 प्रकार से होती है । एक तो कलवे की सिद्धि करने के लिए और दूसरा तरीका मारण सिद्ध करने के लिए ।

दोनो के ही लिए अपनी रक्षा सुरक्षा की तगड़ी वेहवस्ता रखें । जो लोग तन्त्र में दीक्षित एवं परिपक्व नही है वो लोग सपने में भी यह करने का ना सोचे । करते है तो मैं पहले ही लिख कर दे सकता हूँ आपके शत्रु के मरने के अगले दिन ही आपके घर का एक बच्चा मर जायेगा । इसलिए अपने गुरु की देख रेख में करें गुरु भी ऐसा देखें जो निर्भीक एवं अनुभवी हो नही तो किसी इंटरनेटिया गुरु के चक्कर मे पड़ गए तो पता चले आप से पहले वो गूगल गुरु दौड़ लगा दे । 


इसकी सिद्धि के लिए किसी नीची जाति के बच्चे की कब्र खोजे । चौदस की रात्रि को वहां जाएं और उसके शव के ऊपर आसन लगाए इस साधना में दीपक ना लगाए केवल मसानी धूप का प्रयोग करें कोयले पर । आसान बांधे और दशदिग्बन्धन करें । गुरु मन्त्र का जाप करें गुरु स्मरण करें । यहां अपने जाप का उद्देश्य बोले कलवा सिद्धि का / अथवा मारण सिद्धि का । 


फिर १०१ जाप करें । यह प्रक्रिया ४१ दिन करें । जो कलवा सिद्धि करना चाहते है वो 41वे दिन बच्चे की उंगली काट कर अपने साथ घर ले आये ( घर से मतलब है एकांत स्थान । अपने पारिवारिक घर नही लाये । ) .


और फिर उस उंगली को अपने आसन के निचे रख कर मन्त्र का जाप शुरू करें वहां कलवा हाजिर होगा जो किसी भी रूप में हो सकता है या नही भी हो तो आपको उसकी आवाज आएगी । खूद पहले कुछ ना बोले उसके बात करने का इंतज़ार करें । वो जब उंगली मांगे तब त्रिवाचा भरवा ले ( यहां अपनी बुद्धि विवेक का प्रयोग करें एक गलत शब्द जीवन् बर्बाद कर सकता है ) उसकी ऐसी कोई शर्त ना माने जो आप हर समय पूरी ना कर पाएं । वचन लेने के बाद उससे एक निशानी लेलो और उंगली लौटा दो । वो निशानी को हाथ मे लेकर जो काम के लिए उसका स्मरण करोगे वो तुरंत सिद्ध करेगा । 


अब दूसरी विधि जो प्रत्यक्षीकरण ना कर के मारण हेतु सिद्ध करते है उनके लिए । मन्त्र सिद्धि के पश्चात । शनिचरी अमावस्या की दोपहर में 1 काली हांडी लें । 

उसमे लोहे के पुराने जंग लगे हुए टुकड़े डाले उसमे मांस और कारण डालें । हांडी पर शमशान की राख से शत्रु का नाम लिखें । हांडी को सामने रख कर 101 मन्त्र पढ़े फोड़ कालेज तोड़ छाती से पहले शत्रु का नाम लेकर । फिर शत्रु की दिशा में मुख करके मेरा अमुक शत्रु तत्क्षण यमलोक को जाए । और ऐसा बोल कर हांडी जमीन पर जोर से फेंक दें ।


इसके बाद अपनी और अपने घर वालो की सुरक्षा की वेहवस्ता का पूरा ध्यान दें । क्योंकि कलवा अपना काम पूरा करने के तुरंत बाद पलट कर आप पर वार करने आएगा । जो लोग कलवे को नियंत्रण कर सकते है वही यह प्रयोग करें । 

मैंने इसका प्रत्यक्षीकरण का विधान सिद्ध नही किया है । मारण प्रयोग हेतु सिद्ध किया था । साधना काल मे अच्चानक बहुत तेज दुर्गंध आने लगती है एवं नींद के बहुत तेज झोंके आते है । लेकिन जाप पूर्ण होने पर स्थिति सामान्य होजाती है । कभी कभी ऐसा महसूस होता है कोई उंगली पकड़ रहा है हाथों की पर इनपर ध्यान ना देते हुए अपने जाप पर ध्यान दो अन्यथा कलवे के कौतुक में फस जाओगे ।


साधना से होने वाली हानि के लिए हम् जिम्मेदारी नही लेते है ।


🚩🚩 जय श्री महाकाल 🚩🚩

🚩🚩जय ओगड़ नाथ  🚩🚩

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

सियार सिंगी से महाशक्तिशाली वशीकरण, सिद्ध कैसे , असली नकली की पहचान और इसे रखने के शक्तिशाली फायदे

 ✴️सियारसिंग्गी✴️


सियार सिंगी से महाशक्तिशाली वशीकरण, सिद्ध कैसे , असली नकली की पहचान और इसे रखने के शक्तिशाली फायदे ?  


ॐ  मित्रों इस लेख में आपका स्वागत है सियार सिंगी एक बाल के गुच्छे जैसी होती है बहुत कम सियारों में सिंघी पाई जाती है यह सियार के नाक के ऊपर बालों के गुच्छे के रूप में होती है धीरे धीरे यह बड़ी और मजबूत होती जाती है जिसे हम सियार सिंघी के नाम से जानते हैं।


यह अत्यंत चमत्कारी वस्तु है इसे घर में रखने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है इसमें वशीकरण की अत्यंत प्रभावशाली शक्ति होती है इसे सिद्ध कर लिया जाए तो इसकी शक्ति पहले से हजारों गुना बढ़ जाती है इसके माध्यम से किसी के भी द्वारा अपना मनपसंद कार्य करवाया जा सकता है।


सियार सिंगी के फायदे - (सियार सिंगी से क्या होता है)


(1) इसके द्वारा अत्यधिक धनवान बना जा सकता है।


(2) इसके माध्यम से अत्यंत भाग्यशाली बना जा सकता है।


(3) किसी भी क्षेत्र में आसानी से सफलता की प्राप्ति की जा सकती है।


(4) इसके द्वारा पति पत्नी के झगड़े को प्रेम में बदला जा सकता है।


(5) व्यापार में अत्यधिक लाभ कमाने हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है।


(6) मनपसंद प्रेम हासिल करने के लिए


(7) इसके माध्यम से किसी को भी खुद की और आकर्षित किया जा सकता है।


(8) कर्ज से मुक्ति हेतु


(9) यह मुकदमे में विजय भी दिलाता है


सियार सिंगी के टोटके -


(1) होली के दिन सियार सिंगी को चांदी की डिब्बी में रखकर हर पुष्य नक्षत्र में सियार सिंघी पर सिंदूर चढ़ाएं ऐसा करने से घर में धन आने के अत्यधिक मार्ग उत्पन्न होंगे और कर्ज से छुटकारा प्राप्त होगा।


(2) चांदी या तांबे की डिब्बी में सियार सिंगी को डालकर इसके ऊपर लोंग और इलायची डालें इसके पश्चात उसके ऊपर सिंदूर डालकर डिब्बी सही तरह से बंद कर दें। अब उस डिब्बी पर लाल कपड़ा लपेटकर उसे अपने मंदिर में, तिंजोरी में या गल्ले में कहीं पर भी रख दें। अब रोज उस स्थान पर ॐ नमो भगवती पद्मा श्रीम ॐ हरीम, पूर्व दक्षिण उत्तर पश्चिम धन द्रव्य आवे, सर्व जन्य वश्य कुरु कुरु नमःl” का जाप 5 बार करें और जो समस्या हो उसे मन में विचार लें ऐसा करने से आपकी वह समस्या दूर होगी। (यह टोटका किसी भी परेशानी को दूर करने में सक्षम है) पारिवारिक लोगों को यह अवश्य करना चाहिए। 


सियार सिंगी से वशीकरण -


(3) यह प्रयोग शुक्रवार के दिन करें । एक प्लेट लें और उसके ऊपर जिसे वस में करना हो उसका नाम रोली या कुमकुम से लिख दें अगर आपके पास उसकी कोई फोटो हो तो लिखे हुए नाम के ऊपर उसकी फोटो रख दें इसके पश्चात फोटो के ऊपर सियार सिंघी का स्थापन करें और सियार सिंघी को आराध्य समझते हुए उसपर जल, पुष्प, अच्छत और इत्र अर्पित करें । मिष्ठान का भोग दें और नीचे दिए गए मंत्र का 108 बार जाप करें।


बिस्मिलाह मेह्मंद पीर आवे घोढ़े की असवारी ,पवन को वेग मन को संभाले, अनुकूल बनावे , हाँ भरे , कहियो करे , मेह्मंद पीर की दुहाई , सबद सांचा पिण्ड काचा फुरो मंत्र इश्वरो वाचा.


यह मुस्लिम समुदाय का सटीक कार्य करने वाला मंत्र है लगातार 11 दिनों तक 108 बार जाप करने से यह सिद्ध हो जाता है और 11 दिनों के बाद नाम लिखे हुए प्लेट, चित्र और सियार सिंघी को लाल कपडे में अच्छी तरह से बांधकर कहीं रख दें जब तक सियार सिंघी चित्र से चिपका रहेगा तब तक वह व्यक्ति जिसका नाम आपने लिखा है वह आपके सम्मोहन में रहेगा । सियार सिंगी के शक्ति को ऊर्जावान रखने के लिए रोजाना सियार सिंगी से लपटे कपड़े के समक्ष खड़े होकर दिए गए मंत्र का 21 बार जाप करें ।


(4) सियार सिंगी में उपयोग किए गए उड़द के दाने को जिसके भी घर के दरवाजे में फेंक दिया जाए तो वह व्यक्ति बर्बाद ही जाता है उसकी तरक्की हर प्रकार से रुक जाती है और वह कभी आबाद नहीं हो पाता।


(5) अगर आप किसी भी व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हैं तो सियार सिंगी में उपयोग की गई इलायची उसे खिला दें वह आपके वस में हो जाएगा और आप उससे मनचाहा कार्य करवा सकते हैं।


(7) जो भी व्यक्ति सियार सिंगी अपने पास रखता है उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


(8) यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मारकेश की दशा हो अथार्थ मृत्यु की दशा हो तो उसे सियार सिंघी हमेशा अपने पास रखना चाहिए इससे लाभ प्राप्त होगा ।


(9) सियार सिंगी के सिंदूर से जो भी व्यक्ति अपनी पत्नी का मांग भरता है या जो स्त्री सियार सिंगी के सिंदूर से खुद का मांग भरती है तो उसका पति हमेशा उसके वस में रहता है।


(10) अगर आप भूत प्रेत आदि से परेशान है तो सियार सिंगी में उपयोग किए गए चावल का उपयोग करने से भूत प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।


सियार सिंगी सिद्ध करने की विधि -


दीपावली से पूर्व धनतेरस को सियार सिंघी का एक जोड़ा लें उसका लाल कपडे में स्थापन करें और लाल कपड़ा धारण कर लाल आसन पर बैठ जाएं और सरसों के तेल का दिया जला लें। सियार सिंघी पर गंगा जल छिड़कें, चावल चढ़ाएं, 5 लौंग साबुत और 5 चोटी इलायची अर्पित करें । ॐ चामुण्डाये नमः इस मंत्र का 2100 बार जाप करें । जाप समाप्त आने के पश्चात अग्नि में 21 गूग्गल की आहुति दें ऐसा दीपावली तक रोजाना करें ।


दीपावली की रात को पूजा करने के पश्चात नीचे दिए गए मंत्र का सियार सिंघी के सामने 1100 जाप करें।


सियार सिंगी सिद्धि मंत्र


ॐ नमो भगवते रुद्राणी चमुन्डानी घोराणी सर्व पुरुष क्षोभणी सर्व शत्रु विद्रावणी। ॐ आं क्रौम ह्रीं जों ह्रीं मोहय मोहय क्षोभय क्षोभय, मम वशी कुरुं वशी कुरुं क्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं स्वाहा।


इस मंत्र का जाप करने के पश्चात सियार सिंघी को किसी तांबे कि डिब्बी या चांदी की डिब्बी में डालकर उसमें 5 लोग, 5 इलायची और एक कपूर का टुकड़ा डाल कर डिब्बी बंद कर दें।


सियार सिंगी का प्रयोग -


मित्रों जब आपको इसका उपयोग करना हो तो सियार सिंगी के सामने ऊपर दिए गए दोनों मंत्रों का जाप एक एक माला करें और माता चामुंडा से उसे अपने अनुकूल होने की प्रार्थना करें इसके पश्चात डब्बी को बंद करके अपने जेब में रख लें ऐसा करने से आपका कार्य संपन्न हो जाएगा।


असली सियार सिंगी की पहचान कैसे करें -


मित्रों कुछ जानकारियां है जिनके हिसाब से आप असली सियार सिंगी की पहचान कर सकते हैं इसके लिए कुछ समय की आवश्यकता होती है -  (1) सियार सिंगी के बाल बढ़ते है (2) सियार सिंगी के बाल धीरे धीरे बढ़ते हैं (3) वह हिस्सा जहां बाल नहीं होते वह सिंदूर के साथ गीला रहता है यह कुछ उपाय है जिनके माध्यम से असली सियार सिंगी की पहचान की जाती है।


कुछ ध्यान रखने योग्य बातें : -


(1) प्रयोग की जाने वाली सामग्री जैसे सियार सिंगी, गोरोचन और इत्र असली होना चाहिए ।

*काशी अघोर धर्मार्थ सेवा न्यास*


(2) गौरोचन और इत्र की मात्रा इतनी होनी चाहिए की वह 21 दिन तक चले और उसके पश्चात भी बचा रहे।


(3) यह प्रयोग उन्हीं लोगों पर असर करेगा जिन्हें आप जानते है चाहे वह मित्र हो या शत्रु । अनजान व्यक्ति पर इसका प्रयोग कार्य नहीं करेगा।


(4) इसका प्रयोग अगर आप एक पर करते हैं तो कुछ समय रुकें उसके पश्चात दूसरे पर करें नहीं तो जल्दी जल्दी करने से आप अपनी चेतना खो सकते हैं।


(5) इस प्रयोग के बारे में किसी को पता नहीं होना चाहिए उसे तो बिल्कुल नहीं जिस पर आप इसका प्रयोग कर रहे हैं।


यह कुछ ध्यान रखने हेतु बातें है जिसे ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए बहुत से लोग आधा अधूरा ज्ञान देकर लोगों को संकट में डाल देते हैं।


गुरुवार, 18 मार्च 2021

सात फेरे और सात वचन


                           सात फेरे और सात वचन

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विवाह एक ऐसा मौक़ा होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दोpp परिवारों का जीवन भी पूरी तरह बदल जाता है। भारतीय विवाह में विवाह की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है। जो सबसे मुख्य रस्म होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं। हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। और यह सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।


सात फेरों के सात वचन 

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विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है। कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।


प्रथम वचन

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तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!


(यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है। जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं, वही सुखद फलदायक होता है। पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।


द्वितीय वचन

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पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!


(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है--गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद-विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।


तृतीय वचन

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जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,

वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!


(तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)


चतुर्थ वचन

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कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!


(कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)


इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है। विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पाएगी। इसलिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होकर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।


पंचम वचन

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स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!


(इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है। वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


यह वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है। बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है, साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।


षष्ठम वचनः

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न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,

वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!


(कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं। विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है। वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं। ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा। यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए, साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।


सप्तम वचनः

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परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!


(अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है। इसलिए इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

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सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि

 


कुंजीका स्त्रोत वास्तव में सफलता की कुंजी ही है, सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। षटकर्म में भी कुंजिका रामबाण कि तरह कार्य करता है। परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोड़ न लिया जाए तब तक इसके पूर्ण प्रभाव कम ही दिख पाते है। आज हम यहां कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि तथा उसके अन्य प्रयोगों पर चर्चा करेंगे। सर्व प्रथम सिद्धि विधान पर चर्चा करते है। साधक किसी भी मंगलवार अथवा शुक्रवार से यह साधना आरम्भ करें। समय रात्रि 10 बजे के बाद का हो और 11:30 बजे के बाद कर पाये तो और भी उत्तम होगा। लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पूर्व अथवा उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये। सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें और उस पर मां दुर्गा का चित्र स्थापित करें। अब मां का सामान्य पूजन करें, तेल अथवा घी का दीपक प्रज्वलित करें। किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप मे अर्पित करें, 


और हाथ में जल लेकर संकल्प लें, कि मैं आज से सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हुं, मैं नित्य 9 दिनों तक 51 पाठ करूंगा, मां मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे कुंजिका स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करें तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दें। जल भूमि पर छोड़ दें और साधक 51 पाठ आरम्भ करें। इसी प्रकार साधक 9 दिनों तक यह अनुष्ठान करें। प्रसाद नित्य स्वयं खाए, 

इस प्रकार कुंजिका स्तोत्र साधक के लिये पूर्ण रूप से जागृत हो जाता है


आसन, स्वयं के वस्त्र, पूजा के वस्त्र, लाल चुनरी सब कुछ लाल, कुमकुम, लाल अक्षत, लाल पुष्प, धूप, घी का दीपक, लाल अनार काट के प्रसाद


अब दाहिने हाथ में जल,कुंकुम, अक्षत ले कर निम्न कुंजिका विनियोग करें :-


अस्य श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र मन्त्रस्य सदा शिव ऋषि : अनुष्टुप छन्द : श्री त्रिगुणात्मिका देवता ॐ ऐं बीजं ॐ ह्रीं शक्ति : ॐ क्लीं कीलकं मम् सर्व अभीष्ट सिद्धयर्थे विनियोगः


अब बीज मंत्र का 51 बार उच्चारण करें:-


ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ज्वल हं सं लं क्षंं फट् स्वाहा।।


कुंजिका स्तोत्र ( दुर्गा सप्तशती से ) 51 पाठ करें।


अंतिम रात्रि 10 बजे के बाद बीज मंत्र से ( स्तोत्र से नहीं)


85 बार आहुति हवन सामग्री से,


11 बार आहुति बिल्व पत्र से,


11 बार आहुति गुलाब पुष्पों से,


अंतिम पूर्णाहुति नारियल गोले को ऊपर से जरा सा काट कर पुरा शक्कर भर के फिर नारियल को पूर्ण करके लाल वस्त्र में लपेट कर  आहुति कर दें।


अंत मे कुंजिका स्तोत्र का पुनः एक पाठ करें।


देवी आरती कर के साधना को पूर्णता दें।


( यह सिद्ध कुंजिका का विशेष क्रम है जिसे किसी भी कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है।


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कुंजिका स्तोत्र और कुछ आवश्यक नियम―

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1)― साधना काल मे ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक है, केवल देह से ही नहीं अपितु मन से भी आवश्यक है।

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2)― साधक भूमि शयन कर पाये तो उत्तम होगा।

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3)― कुंजिका स्तोत्र के समय मुख में पान रखा जाये तो इससे मां प्रसन्न होती है। इस पान में चुना, कत्था और ईलायची के अतिरिक्त और कुछ ना डालें, कई साधक सुपारी और लौंग भी कुछ डालते हैं पर इतनी देर पान मुख में रहेगा तो सुपारी से जिह्वा कट सकती है तथा लौंग अधिक समय मुख में रहेगा तो छाले कर पैदा कर देते है, अतः ये दो वस्तु ना डालें।

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4)― अगर नित्य कुंजिका स्तोत्र समाप्त करने के बाद एक अनार काटकर मां को अर्पित किया जाये तो इससे साधना का प्रभाव और अधिक हो जाता है, परन्तु ध्यान रहें यह अनार साधक को नहीं खाना चाहिए इसको नित्य प्रातः गाय को खिला देना चाहिए।

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5)― यदि आपका रात्रि में कुंजिका का अनुष्टान चल रहा है तो नित्य प्रातः पूजन के समय किसी भी माला से 3 माला नवार्ण मंत्र की करें, इससे यदि साधना काल में आपसे कोई त्रुटि हो रही होगी तो वो त्रुटि समाप्त हो जायेगी। वैसे ये आवश्यक अंग नहीं है फिर भी साधक चाहें तो कर सकते हैं।

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6)― साधना गोपनीय रखे गुरु तथा मार्गदर्शक के अतिरिक्त किसी अन्य को साधना समाप्त होने तक कुछ न बताएं, ना ही साधना सामाप्त होने तक किसी से कोई चर्चा करें।

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7)― जहां तक सम्भव हो साधना में सभी वस्तुए लाल ही प्रयोग करें।

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जब साधक उपरोक्त विधान के अनुसार कुंजिका को जागृत कर लें, तब इसके माध्यम से कई प्रकार के काम के प्रयोग किये जा सकते हैं। यहां कुछ प्रयोग दिये ज रहे है।

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के प्रयोग―

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धन प्राप्ति―

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किसी भी शुक्रवार की रात्रि में मां का सामान्य पुजन करें, इसके बाद कुंजिका के 9 पाठ करें इसके पश्चात, नवार्ण मन्त्र से अग्नि में 21 आहुति सफेद तिल से प्रदान करें। नवार्ण मंत्र में “श्रीं” बीज आवश्य जोड़े। “श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः स्वाहा”, आहुति के बाद पुनः 9 पाठ करें, इस प्रकार 9 दिनों तक करने से धनागमन के मर्ग खुलने लगते है।

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शत्रु मुक्ति―

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शनिवार रात्रि में काले वस्त्र पर एक निम्बू स्थापित करें तथा इस पर शत्रु का नाम काजल से लिख दें, और इस निम्बू के समक्ष ही सर्व प्रथम 11 बार कुंजिका का पाठ करें, इसके बाद “हुं शत्रुनाशिनी हुं फट” इस मन्त्र का 5 मिनट तक निम्बू पर त्राटक करते हुए जाप करें, फिर पुनः 11 पाठ करें, इसके बाद निम्बू कहीं भूमि में गाड़ दें, शत्रु बाधा समाप्त हो जायेगी।

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रोग नाश―

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नित्य कुंजिका के 11 पाठ करके काली मिर्च अभिमंत्रित कर लें, इसके बाद रोगी पर से इसे 7 बार घुमाकर घर के बाहर फेंक दें। कुछ दिन प्रयोग करने से सभी रोग शांत हो जाते है।

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आकर्षण―

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कुंजिका का 9 बार पाठ करें तत्पश्चात “क्लीं ह्रीं क्लीं” मन्त्र का 108 बार जाप करें तथा पुनः 9 पाठ कुंजिका के करें और जल अभीमंत्रित कर लें, इस जल को थोड़ा पी जाएं और थोड़े से मुख धो लें, सतत करते रहने से साधक में आकर्षण शक्ति का विकास होता हैं।

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स्वप्न शांति―

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जिन लोगों को बुरे स्वप्न आते है उनके लिए ये प्रयोग उत्तम है, किसी भी समय एक सिक्का लें और थोड़े काले तिल लें, 3 दिनों तक नित्य 21 पाठ कुंजिका के करें और इन्हे अभिमंत्रित करें, इसके बाद दोनों को एक लाल वस्त्र मे बांध कर तकिये के निचे रखकर सोये। धीरे-धीरे बुरे स्वप्न आना बन्द हो जायेंगे।

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तंत्र सुरक्षा―

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बुधवार के दिन एक लोहे कि कील लें और इसके समक्ष कुंजिका के 21 पाठ करें प्रत्येक पाठ की समाप्ति पर कील पर एक कुमकुम कि बिंदी लगाये इसके बाद इस कील को लाल वस्त्र मे लपेट कर घर के मुख्य द्वार के बाहर भूमि में गाढ़ दें, इससे घर तंत्र क्रियायों से सुरक्षित रहेगा।

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उपरोक्त सभी प्रयोग सरल है परन्तु ये तभी प्रभावी होंगे जब आप स्वयं के लिए कुंजिका को जागृत कर लेंगे। अतः सर्वप्रथम कुंजिका को जागृत करें इसके बाद ही कोई प्रयोग करें।

बुधवार, 18 नवंबर 2020

जप माला का संस्कार कैसे करे ?

 जप माला का संस्कार कैसे करे ?

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 कोई भी जप , साधना या अनुष्ठान में

माला की जरुरत होती है ! प्रायः जनसाधारण बाजार से

माला खरीदकर उसी से जप आरम्भ कर देते है ! ऐसी माला से जप करना निरर्थक व निषिद्ध है क्योंकि उससे कोई लाभ या सिद्धि सम्भव नहीं है ! सर्वप्रथम माला क्रय करने के बाद विधवत उसके संस्कार करना चाहिए अन्यथा जप निष्फल है !

अधिकतम माला संस्कार की विधि जो प्राप्त होती है उसमें कुछ न कुछ कमी अवश्य रहती है जैसे संस्कार दिया है तो प्राणप्रतिष्ठा नहीं होती , आज आप सब के लाभार्थ मैं माला संस्कार की संपूर्ण विधि पर प्रकाश डाल रहा हु आशा करता हु की साधक भाई - बहनो के कुछ काम आ जाये !

व्यावहारिक विधि👇

 साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन - पवित्रीकरण करने के बाद गणेश गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले ! एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा ! इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे ! अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये )करे !

 {पंचगव्य क्या है :-गाय का दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर यह पांच चीज गौ का ही हो उसको पंचगव्य कहते है ! }

पंचगव्य से माला को स्नान कराना है - स्नान कराते हुए  ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !! 

पर्यन्त समस्त स्वर  व्यंजन का उच्चारण करे ! 

यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धोले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा !

माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद निम्न मंत्र बोलते हुए माला को जल से धो ले,अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन कुमकुम आदि का तिलक करे


ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कल विकरणाय नमो बलविकरणाय नमः !

बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!


अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले -


ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व

शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:


अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र का १०८ बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे -

ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम

ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु

सदा शिवोम !!


अब साधक माला की प्राण - प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे -

ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं

ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने

विनियोगः !!


अब माला को बाय हाथ में लेकर दाय हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है ! 

 

ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं

ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं

लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य

मालाम जीव इह स्थितः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं

हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम

सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण

प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा ! 


ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् 

ॐ प्रतिष्ठ !!


अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे ! इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है !


नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे -


ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ

साधिनी साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा ! 

ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !


जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए ! गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है !

आशा करता हु अब आप जब भी माला बाजार से ख़रीदेगे तो उपरोक्त विधान अनुसार संस्कार अवश्य करेगे !

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🔱श्री कालिका ज्योतिष एवं अनुसंधान केंद्र🔱

+91 94620-12134


शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

दुर्गा सप्तशती पाठ के बाद हवन विधि व हवन सामग्री

 कुछ लोग दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन खुद की मर्जी से कर लेते है और हवन सामग्री भी खुद की मर्जी से लेते है ये उनकी गलतियों को सुधारने के लिए है।

दुर्गा सप्तशती के वैदिक आहुति की सामग्री---(एक बार ये भी करके देखे और खुद महसुस करे चमत्कारो को)
प्रथम अध्याय-एक पान देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।
द्वितीय अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष
तृतीय अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद
चतुर्थ अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष,

चतुर्थ अध्याय- के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।

पंचम अध्ययाय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।
षष्टम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।
सप्तम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।
अष्टम अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।
नवम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।
दशम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।
एकादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।
द्वादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल
त्रयोदश अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।

दुर्गा सप्तशती के अध्याय से कामनापूर्ति-
1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने और सिद्ध करने की मुख्य विधियाँ:--

सामान्य विधि
नवार्ण मंत्र जप और सप्तशती न्यास के बाद तेरह अध्यायों का क्रमशः पाठ, प्राचीन काल में कीलक, कवच और अर्गला का पाठ भी सप्तशती के मूल मंत्रों के साथ ही किया जाता रहा है। आज इसमें अथर्वशीर्ष, कुंजिका मंत्र, वेदोक्त रात्रि देवी सूक्त आदि का पाठ भी समाहित है जिससे साधक एक घंटे में देवी पाठ करते हैं। 

वाकार विधि :
यह विधि अत्यंत सरल मानी गयी है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। 

संपुट पाठ विधि :
किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है।

सार्ध नवचण्डी विधि
इस विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि द्वारा पाठ करते हैं। एक ब्राह्मण सप्तशती का आधा पाठ करता है। (जिसका अर्थ है- एक से चार अध्याय का संपूर्ण पाठ, पांचवे अध्याय में ''देवा उचुः- नमो देव्ये महादेव्यै'' से आरंभ कर ऋषिरुवाच तक, एकादश अध्याय का नारायण स्तुति, बारहवां तथा तेरहवां अध्याय संपूर्ण) इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण कार्य की पूर्णता मानी जाती है। एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है। इस प्रकार कुल ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा नवचण्डी विधि द्वारा सप्तशती का पाठ होता है। पाठ पश्चात् उत्तरांग करके अग्नि स्थापना कर पूर्णाहुति देते हुए हवन किया जाता है जिसमें नवग्रह समिधाओं से ग्रहयोग, सप्तशती के पूर्ण मंत्र, श्री सूक्त वाहन तथा शिवमंत्र 'सद्सूक्त का प्रयोग होता है जिसके बाद ब्राह्मण भोजन,' कुमारी का भोजन आदि किया जाता है। वाराही तंत्र में कहा गया है कि जो ''सार्धनवचण्डी'' प्रयोग को संपन्न करता है वह प्राणमुक्त होने तक भयमुक्त रहता है, राज्य, श्री व संपत्ति प्राप्त करता है। 

शतचण्डी विधि :
मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों (योग्य) को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अलावा प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए। शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ मानते हैं। इस अनुष्ठान विधि में नौ कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो दो से दस वर्ष तक की होनी चाहिए तथा इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए। इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या, यश हेतु क्षत्रिय कन्या, धन के लिए वेश्य तथा पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा ''मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।'' इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए। वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें। शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषी, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्याय देवताओं का वैदिक पूजन होता है। जिसके पश्चात् चार दिनों तक पूजा सहित पाठ करना चाहिए। पांचवें दिन हवन होता है। 

इन सब विधियों (अनुष्ठानों) के अतिरिक्त प्रतिलोम विधि, कृष्ण विधि, चतुर्दशीविधि, अष्टमी विधि, सहस्त्रचण्डी विधि (1008) पाठ, ददाति विधि, प्रतिगृहणाति विधि आदि अत्यंत गोपनीय विधियां भी हैं जिनसे साधक इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति कर सकता है।

नवरात्री घट स्थापना एवं पूजन विधि:-

हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है।
माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।

पूजन सामग्री:-

माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

घट स्थापना विधि
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पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें।
कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।
मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें:-
🌺🍃🌺भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.
अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.
नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें.
अब एक दूसरी स्वच्छ थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर पुष्प का आसन लगाकर दुर्गा प्रतिमा या तस्वीर या यंत्र को स्थापित करें। अब निम्न प्रकार दुर्गा पूजन करे:-
स्नानार्थ जलं समर्पयामि (जल से स्नान कराए)
स्नानान्ते पुनराचमनीयं जल समर्पयामि (जल चढ़ाए)
दुग्ध स्नानं समर्पयामि (दुध से स्नान कराए)
दधि स्नानं समर्पयामि (दही से स्नान कराए)
घृतस्नानं समर्पयामि (घी से स्नान कराए)
मधुस्नानं समर्पयामि (शहद से स्नान कराए)
शर्करा स्नानं समर्पयामि (शक्कर से स्नान कराए)
पंचामृत स्नानं समर्पयामि (पंचामृत से स्नान कराए)
गन्धोदक स्नानं समर्पयामि (चन्दन एवं इत्र से सुवासित जल से स्नान करावे)
शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि (जल से पुन: स्नान कराए)
यज्ञोपवीतं समर्पयामि (यज्ञोपवीत चढ़ाए)
चन्दनं समर्पयामि (चंदन चढ़ाए)
कुकंम समर्पयामि (कुकंम चढ़ाए)
सुन्दूरं समर्पयामि (सिन्दुर चढ़ाए)
बिल्वपत्रै समर्पयामि (विल्व पत्र चढ़ाए)
पुष्पमाला समर्पयामि (पुष्पमाला चढ़ाए)
धूपमाघ्रापयामि (धूप दिखाए)
दीपं दर्शयामि (दीपक दिखाए व हाथ धो लें)
नैवेध निवेद्यामि (नेवैध चढ़ाए(निवेदित) करे)
ऋतु फलानि समर्पयामि (फल जो इस ऋतु में उपलब्ध हो चढ़ाए)
ताम्बूलं समर्पयामि (लौंग, इलायची एवं सुपारी युक्त पान चढ़ाए)
दक्षिणा समर्पयामि (दक्षिणा चढ़ाए)
इसके बाद कर्पूर अथवा रूई की बाती जलाकर आरती करे।
आरती के नियम:- प्रत्येक व्यक्ति जानकारी के अभाव में अपनी मन मर्जी आरती उतारता रहता है। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणो पर से, दो बार नाभि पर से, एकबार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से।
आरती की बत्तियाँ १, ५, ७ अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियाँ बनाकर आरती की जानी चाहिए।

दुर्गा जी की आरती:-
🌺🌺
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
 
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
 
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
 
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
 
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
 
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
 
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
 
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
 
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
 
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

प्रदक्षिणा
🌺🍃🌺🍃🌺
“यानि कानि च पापानी जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
प्रदक्षिणा समर्पयामि।“

प्रदक्षिणा करें (अगर स्थान न हो तो आसन पर खड़े-खड़े ही स्थान पर घूमे)

क्षमा प्रार्थना🌺👉  पुष्प सर्मपित कर देवी को निम्न मंत्र से प्रणाम करे।
“नमो दैव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृतयै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम॥
या देवी सर्व भूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
ततपश्चात देवी से क्षमा प्रार्थना करे कि जाने अनजाने में कोई गलती या न्यूनता-अधिकता यदि पूजा में हो गई हो तो वे क्षमा करें।

 इस पूजन के पश्चात अपने संकल्प मे कहे हुए मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा
अनुसार ९ दिन तक जप करें:-
”ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥“

इस मंत्र के बाद दुर्गा सप्तशती के सभी अध्यायो का पाठ ९ दिन मे पूर्ण करें। या यथा सामर्थ प्रतिदिन एक पाठ करे।
नवरात्री की समाप्ति पर यदि कलश स्थापना की हो तो इसके जल को सारे घर मे छिड़क दें। इस प्रकार पूजा सम्पन्न होती है। यदि कोई व्यक्ति विशेष उपरांकित विधि का पालन करने मे असमर्थ है तो नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

                               "जय माता दी"

लघु रुद्राभिषेक

लघु रुद्राभिषेक पूजा विधि                          लघु रूद्र पूजा (Rudrabhishek) का सामान्य सा अर्थ यही होता है कि शिव की ऐसी पूजा जो व्यक्त...