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शुक्रवार, 9 मार्च 2018

भूत-प्रेत बाधा निवारण के सरल उपाय...



भूत-प्रेत बाधा निवारण के सरल उपाय...
भूत-प्रेत बाधा : पहचान और निदान......

अक्सर सुनने में आता है कि उसके ऊपर भूत आ गया है या उसको प्रेत ने पकड़ लिया है जिसक कारण उसके घर वाले बहुत परेशान हैं। उसको संभाल ही नहीं पाते हैं। तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाकर भी कुछ नहीं हुआ है। समझ नहीं आता है क्या करें..???
केसे जाने की भूत-प्रेत बाधा है या नहीं..??
आप अपनी या किसी की कुण्डली देखें और यदि ये योग उसमें विद्यमान हैं तो समझ लें कि जातक या जातिका भूत-प्रेत बाधा से परेशान है।
भूत-प्रेत बाधा के योग इस प्रकार हैं-
पहला योग-कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती हैं।
दूसरा योग-यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं।
तीसरा योग-यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। उक्त योगों में दशा-अर्न्तदशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान है।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है :
''अजैकपादहिर्बुध्न- ्यषक्रमित्रानिला��- �्तकैः।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्य��- �म॥
भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।
भूत पीड़ा :
भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है।
यक्ष पीड़ा :
यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है।
पिशाच पीड़ा :
पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है।
शाकिनी पीड़ा :
शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है।
प्रेत पीड़ा :
प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है।
चुडैल पीड़ा :
चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है।
भूत प्रेत कैसे बनते हैं:- इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है
मन की पवित्रता, पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ श्री हनुमानजी की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर निम्न मन्त्र को सिद्ध करके भोजपत्र पर लाल चन्दन या लाल रंग की स्याही से लिखकर रोगी को ताबीज में धारण करा देना चाहिए। 

मंत्र यह है
ॐ हां हीं हूं हौं हः सकल भूतप्रेत दमनाय स्वाहा
यह इन बाधाओं को रोकने का बड़ा ही सरल और चमत्कारी उपाय है
जय माता दी 
सम्पर्क सूत्र 9462012134

बुधवार, 7 मार्च 2018

jay mata di


" जय माता दी "
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कुण्डली के कुछ अशुभ योगों की शान्ति


          "जय माता दी"
कुण्डली के कुछ अशुभ योगों की शान्ति

1).चांडाल योग -

गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक बुजुर्गों का एवम् गुरुजनों का निरादर करता है ,मोफट होता है,तथा अभद्र भाषा का प्रयोग करता है.यह जातक पेट और श्वास के रोगों से पीड़ित हो सकता है

2).सूर्य ग्रहण योग -

सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो जातक को हड्डियों की कमजोरी, नेत्र रोग, ह्रदय रोग होने की संभावना होती है ,एवम् पिता का सुख कम होता है

3). चंद्र ग्रहण योग -

चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक को मानसिक पीड़ा एवं माता को हानि पोहोंचति है

4).श्रापित योग –

शनि के साथ राहु हो तो दरिद्री योग होता है सवा लाख महा मृत्युंजय जाप करें.

5).पितृदोष- 

यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है.

6).नागदोष – 

यदि जातक को 5 भाव में राहु बिराजमान है तो जातक

पितृदोष के साथ साथ नागदोष भी है.

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7).ज्वलन योग-

 सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो

जातक ज्वलन योग(अंगारक योग) से पीड़ित होता है।

8).अंगारक योग-

मंगल के साथ राहु या केतु बिराजमान हो तो जातक

अंगारक योग से पीड़ित होता है.।

9).सूर्य के साथ चंद्र हो तो जातक अमावस्या का जना है

(अमावस्या शान्ति करें).

10).शनि के साथ बुध - प्रेत दोष.

11).शनि के साथ केतु - पिशाच योग.

12).केमद्रुम योग-

चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगे पीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले ही करना पड़ता है.

13).शनि + चंद्र - विषयोग शान्ति करें।

14).एक नक्षत्र जनन शान्ति -
घर के किसी दो व्यक्तियों का एक ही नक्षत्र हो तो उसकी शान्ति करें.

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15).त्रिक प्रसव शान्ति- तीन लड़की के बाद लड़का या तीन लड़कों के बाद लड़की का जनम हो तो वह जातक सभी पर भारी होता है।

16).कुम्भ विवाह - लड़की के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु।

17).अर्क विवाह - लड़के के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु।

18).अमावस जन्म- अमावस के जनम के सिवा कृष्ण चतुर्दशी या प्रतिपदा युक्त अमावस्या जन्म हो तो

भी शान्ति करें।

19).यमल जनन शान्ति - जुड़वा बच्चों की शान्ति करें।

20).पंचांग के 27 योगों में से 9

“अशुभ योग”

1.विष्कुंभ योग.

2.अतिगंड योग.

3.शुल योग.

4.गंड योग.

5.व्याघात योग.

6.वज्र योग.

7.व्यतीपात योग.

8.परिघ योग.

9.वैधृती योग.

21).पंचांग के 11 करणों में से 5

“अशुभ करण”

1.विष्टी करण.

2.किंस्तुघ्न करण.

3.नाग करण.

4.चतुष्पाद करण.

5.शकुनी करण.

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22).शुभाशुभ नक्षत्र

प्रत्येक की अलग अलग संख्या उनके चरणों को संबोधित करती है

जानिये नक्षत्र जिनकी शान्ति करना जरुरी है।

1).अश्विनी का- पहला चरण.अशुभ है।

2).भरणी का – तीसरा चरण.अशुभ है।

3).कृतीका का – तीसरा चरण.अशुभ है।

4).रोहीणी का – पहला,दूसरा और तीसरा चरण अशुभ है।

5).आर्द्रा का – चौथा चरण अशुभ है।

6).पुष्य नक्षत्र का – दूसरा और तीसरा चरण. अशुभ है।

7).आश्लेषा के-चारों चरण अशुभ है।

8).मघा का- पहला और तीसरा चरण अशुभ है.।

9).पूर्वाफाल्गुनी का-चौथा चरण अशुभ है।

10).उत्तराफाल्गुनी का- पहला और चौथा चरण अशुभ है।

11).हस्त का- तीसरा चरण अशुभ है।

12).चित्रा के-चारों चरण अशुभ है।
13).विशाखा के -चारों चरण अशुभ है।
14).ज्येष्ठा के -चारों चरण अशुभ है।
15).मूल के -चारों चरण अशुभ है।
16).पूर्वषाढा का- तीसरा चरण.अशुभ है।
17).पूर्वभाद्रपदा का-चौथा चरण अशुभ है।
18).रेवती का – चौथा चरण अशुभ है।

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लघु रुद्राभिषेक

लघु रुद्राभिषेक पूजा विधि                          लघु रूद्र पूजा (Rudrabhishek) का सामान्य सा अर्थ यही होता है कि शिव की ऐसी पूजा जो व्यक्त...