लोकप्रिय पोस्ट

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

सियार सिंगी से महाशक्तिशाली वशीकरण, सिद्ध कैसे , असली नकली की पहचान और इसे रखने के शक्तिशाली फायदे

 ✴️सियारसिंग्गी✴️


सियार सिंगी से महाशक्तिशाली वशीकरण, सिद्ध कैसे , असली नकली की पहचान और इसे रखने के शक्तिशाली फायदे ?  


ॐ  मित्रों इस लेख में आपका स्वागत है सियार सिंगी एक बाल के गुच्छे जैसी होती है बहुत कम सियारों में सिंघी पाई जाती है यह सियार के नाक के ऊपर बालों के गुच्छे के रूप में होती है धीरे धीरे यह बड़ी और मजबूत होती जाती है जिसे हम सियार सिंघी के नाम से जानते हैं।


यह अत्यंत चमत्कारी वस्तु है इसे घर में रखने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है इसमें वशीकरण की अत्यंत प्रभावशाली शक्ति होती है इसे सिद्ध कर लिया जाए तो इसकी शक्ति पहले से हजारों गुना बढ़ जाती है इसके माध्यम से किसी के भी द्वारा अपना मनपसंद कार्य करवाया जा सकता है।


सियार सिंगी के फायदे - (सियार सिंगी से क्या होता है)


(1) इसके द्वारा अत्यधिक धनवान बना जा सकता है।


(2) इसके माध्यम से अत्यंत भाग्यशाली बना जा सकता है।


(3) किसी भी क्षेत्र में आसानी से सफलता की प्राप्ति की जा सकती है।


(4) इसके द्वारा पति पत्नी के झगड़े को प्रेम में बदला जा सकता है।


(5) व्यापार में अत्यधिक लाभ कमाने हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है।


(6) मनपसंद प्रेम हासिल करने के लिए


(7) इसके माध्यम से किसी को भी खुद की और आकर्षित किया जा सकता है।


(8) कर्ज से मुक्ति हेतु


(9) यह मुकदमे में विजय भी दिलाता है


सियार सिंगी के टोटके -


(1) होली के दिन सियार सिंगी को चांदी की डिब्बी में रखकर हर पुष्य नक्षत्र में सियार सिंघी पर सिंदूर चढ़ाएं ऐसा करने से घर में धन आने के अत्यधिक मार्ग उत्पन्न होंगे और कर्ज से छुटकारा प्राप्त होगा।


(2) चांदी या तांबे की डिब्बी में सियार सिंगी को डालकर इसके ऊपर लोंग और इलायची डालें इसके पश्चात उसके ऊपर सिंदूर डालकर डिब्बी सही तरह से बंद कर दें। अब उस डिब्बी पर लाल कपड़ा लपेटकर उसे अपने मंदिर में, तिंजोरी में या गल्ले में कहीं पर भी रख दें। अब रोज उस स्थान पर ॐ नमो भगवती पद्मा श्रीम ॐ हरीम, पूर्व दक्षिण उत्तर पश्चिम धन द्रव्य आवे, सर्व जन्य वश्य कुरु कुरु नमःl” का जाप 5 बार करें और जो समस्या हो उसे मन में विचार लें ऐसा करने से आपकी वह समस्या दूर होगी। (यह टोटका किसी भी परेशानी को दूर करने में सक्षम है) पारिवारिक लोगों को यह अवश्य करना चाहिए। 


सियार सिंगी से वशीकरण -


(3) यह प्रयोग शुक्रवार के दिन करें । एक प्लेट लें और उसके ऊपर जिसे वस में करना हो उसका नाम रोली या कुमकुम से लिख दें अगर आपके पास उसकी कोई फोटो हो तो लिखे हुए नाम के ऊपर उसकी फोटो रख दें इसके पश्चात फोटो के ऊपर सियार सिंघी का स्थापन करें और सियार सिंघी को आराध्य समझते हुए उसपर जल, पुष्प, अच्छत और इत्र अर्पित करें । मिष्ठान का भोग दें और नीचे दिए गए मंत्र का 108 बार जाप करें।


बिस्मिलाह मेह्मंद पीर आवे घोढ़े की असवारी ,पवन को वेग मन को संभाले, अनुकूल बनावे , हाँ भरे , कहियो करे , मेह्मंद पीर की दुहाई , सबद सांचा पिण्ड काचा फुरो मंत्र इश्वरो वाचा.


यह मुस्लिम समुदाय का सटीक कार्य करने वाला मंत्र है लगातार 11 दिनों तक 108 बार जाप करने से यह सिद्ध हो जाता है और 11 दिनों के बाद नाम लिखे हुए प्लेट, चित्र और सियार सिंघी को लाल कपडे में अच्छी तरह से बांधकर कहीं रख दें जब तक सियार सिंघी चित्र से चिपका रहेगा तब तक वह व्यक्ति जिसका नाम आपने लिखा है वह आपके सम्मोहन में रहेगा । सियार सिंगी के शक्ति को ऊर्जावान रखने के लिए रोजाना सियार सिंगी से लपटे कपड़े के समक्ष खड़े होकर दिए गए मंत्र का 21 बार जाप करें ।


(4) सियार सिंगी में उपयोग किए गए उड़द के दाने को जिसके भी घर के दरवाजे में फेंक दिया जाए तो वह व्यक्ति बर्बाद ही जाता है उसकी तरक्की हर प्रकार से रुक जाती है और वह कभी आबाद नहीं हो पाता।


(5) अगर आप किसी भी व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हैं तो सियार सिंगी में उपयोग की गई इलायची उसे खिला दें वह आपके वस में हो जाएगा और आप उससे मनचाहा कार्य करवा सकते हैं।


(7) जो भी व्यक्ति सियार सिंगी अपने पास रखता है उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


(8) यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मारकेश की दशा हो अथार्थ मृत्यु की दशा हो तो उसे सियार सिंघी हमेशा अपने पास रखना चाहिए इससे लाभ प्राप्त होगा ।


(9) सियार सिंगी के सिंदूर से जो भी व्यक्ति अपनी पत्नी का मांग भरता है या जो स्त्री सियार सिंगी के सिंदूर से खुद का मांग भरती है तो उसका पति हमेशा उसके वस में रहता है।


(10) अगर आप भूत प्रेत आदि से परेशान है तो सियार सिंगी में उपयोग किए गए चावल का उपयोग करने से भूत प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।


सियार सिंगी सिद्ध करने की विधि -


दीपावली से पूर्व धनतेरस को सियार सिंघी का एक जोड़ा लें उसका लाल कपडे में स्थापन करें और लाल कपड़ा धारण कर लाल आसन पर बैठ जाएं और सरसों के तेल का दिया जला लें। सियार सिंघी पर गंगा जल छिड़कें, चावल चढ़ाएं, 5 लौंग साबुत और 5 चोटी इलायची अर्पित करें । ॐ चामुण्डाये नमः इस मंत्र का 2100 बार जाप करें । जाप समाप्त आने के पश्चात अग्नि में 21 गूग्गल की आहुति दें ऐसा दीपावली तक रोजाना करें ।


दीपावली की रात को पूजा करने के पश्चात नीचे दिए गए मंत्र का सियार सिंघी के सामने 1100 जाप करें।


सियार सिंगी सिद्धि मंत्र


ॐ नमो भगवते रुद्राणी चमुन्डानी घोराणी सर्व पुरुष क्षोभणी सर्व शत्रु विद्रावणी। ॐ आं क्रौम ह्रीं जों ह्रीं मोहय मोहय क्षोभय क्षोभय, मम वशी कुरुं वशी कुरुं क्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं स्वाहा।


इस मंत्र का जाप करने के पश्चात सियार सिंघी को किसी तांबे कि डिब्बी या चांदी की डिब्बी में डालकर उसमें 5 लोग, 5 इलायची और एक कपूर का टुकड़ा डाल कर डिब्बी बंद कर दें।


सियार सिंगी का प्रयोग -


मित्रों जब आपको इसका उपयोग करना हो तो सियार सिंगी के सामने ऊपर दिए गए दोनों मंत्रों का जाप एक एक माला करें और माता चामुंडा से उसे अपने अनुकूल होने की प्रार्थना करें इसके पश्चात डब्बी को बंद करके अपने जेब में रख लें ऐसा करने से आपका कार्य संपन्न हो जाएगा।


असली सियार सिंगी की पहचान कैसे करें -


मित्रों कुछ जानकारियां है जिनके हिसाब से आप असली सियार सिंगी की पहचान कर सकते हैं इसके लिए कुछ समय की आवश्यकता होती है -  (1) सियार सिंगी के बाल बढ़ते है (2) सियार सिंगी के बाल धीरे धीरे बढ़ते हैं (3) वह हिस्सा जहां बाल नहीं होते वह सिंदूर के साथ गीला रहता है यह कुछ उपाय है जिनके माध्यम से असली सियार सिंगी की पहचान की जाती है।


कुछ ध्यान रखने योग्य बातें : -


(1) प्रयोग की जाने वाली सामग्री जैसे सियार सिंगी, गोरोचन और इत्र असली होना चाहिए ।

*काशी अघोर धर्मार्थ सेवा न्यास*


(2) गौरोचन और इत्र की मात्रा इतनी होनी चाहिए की वह 21 दिन तक चले और उसके पश्चात भी बचा रहे।


(3) यह प्रयोग उन्हीं लोगों पर असर करेगा जिन्हें आप जानते है चाहे वह मित्र हो या शत्रु । अनजान व्यक्ति पर इसका प्रयोग कार्य नहीं करेगा।


(4) इसका प्रयोग अगर आप एक पर करते हैं तो कुछ समय रुकें उसके पश्चात दूसरे पर करें नहीं तो जल्दी जल्दी करने से आप अपनी चेतना खो सकते हैं।


(5) इस प्रयोग के बारे में किसी को पता नहीं होना चाहिए उसे तो बिल्कुल नहीं जिस पर आप इसका प्रयोग कर रहे हैं।


यह कुछ ध्यान रखने हेतु बातें है जिसे ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए बहुत से लोग आधा अधूरा ज्ञान देकर लोगों को संकट में डाल देते हैं।


गुरुवार, 18 मार्च 2021

सात फेरे और सात वचन


                           सात फेरे और सात वचन

                           〰〰〰〰〰〰〰

विवाह एक ऐसा मौक़ा होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दोpp परिवारों का जीवन भी पूरी तरह बदल जाता है। भारतीय विवाह में विवाह की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है। जो सबसे मुख्य रस्म होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं। हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। और यह सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।


सात फेरों के सात वचन 

〰〰〰〰〰〰〰

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है। कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।


प्रथम वचन

〰〰〰〰

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!


(यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है। जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं, वही सुखद फलदायक होता है। पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।


द्वितीय वचन

〰〰〰〰

पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!


(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है--गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद-विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।


तृतीय वचन

〰〰〰〰

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,

वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!


(तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)


चतुर्थ वचन

〰〰〰〰

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!


(कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)


इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है। विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पाएगी। इसलिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होकर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।


पंचम वचन

〰〰〰〰

स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!


(इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है। वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


यह वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है। बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है, साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।


षष्ठम वचनः

〰〰〰〰

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,

वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!


(कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं। विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है। वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं। ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा। यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए, साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।


सप्तम वचनः

〰〰〰〰

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!


(अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)


विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है। इसलिए इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि

 


कुंजीका स्त्रोत वास्तव में सफलता की कुंजी ही है, सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। षटकर्म में भी कुंजिका रामबाण कि तरह कार्य करता है। परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोड़ न लिया जाए तब तक इसके पूर्ण प्रभाव कम ही दिख पाते है। आज हम यहां कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि तथा उसके अन्य प्रयोगों पर चर्चा करेंगे। सर्व प्रथम सिद्धि विधान पर चर्चा करते है। साधक किसी भी मंगलवार अथवा शुक्रवार से यह साधना आरम्भ करें। समय रात्रि 10 बजे के बाद का हो और 11:30 बजे के बाद कर पाये तो और भी उत्तम होगा। लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पूर्व अथवा उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये। सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें और उस पर मां दुर्गा का चित्र स्थापित करें। अब मां का सामान्य पूजन करें, तेल अथवा घी का दीपक प्रज्वलित करें। किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप मे अर्पित करें, 


और हाथ में जल लेकर संकल्प लें, कि मैं आज से सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हुं, मैं नित्य 9 दिनों तक 51 पाठ करूंगा, मां मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे कुंजिका स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करें तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दें। जल भूमि पर छोड़ दें और साधक 51 पाठ आरम्भ करें। इसी प्रकार साधक 9 दिनों तक यह अनुष्ठान करें। प्रसाद नित्य स्वयं खाए, 

इस प्रकार कुंजिका स्तोत्र साधक के लिये पूर्ण रूप से जागृत हो जाता है


आसन, स्वयं के वस्त्र, पूजा के वस्त्र, लाल चुनरी सब कुछ लाल, कुमकुम, लाल अक्षत, लाल पुष्प, धूप, घी का दीपक, लाल अनार काट के प्रसाद


अब दाहिने हाथ में जल,कुंकुम, अक्षत ले कर निम्न कुंजिका विनियोग करें :-


अस्य श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र मन्त्रस्य सदा शिव ऋषि : अनुष्टुप छन्द : श्री त्रिगुणात्मिका देवता ॐ ऐं बीजं ॐ ह्रीं शक्ति : ॐ क्लीं कीलकं मम् सर्व अभीष्ट सिद्धयर्थे विनियोगः


अब बीज मंत्र का 51 बार उच्चारण करें:-


ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ज्वल हं सं लं क्षंं फट् स्वाहा।।


कुंजिका स्तोत्र ( दुर्गा सप्तशती से ) 51 पाठ करें।


अंतिम रात्रि 10 बजे के बाद बीज मंत्र से ( स्तोत्र से नहीं)


85 बार आहुति हवन सामग्री से,


11 बार आहुति बिल्व पत्र से,


11 बार आहुति गुलाब पुष्पों से,


अंतिम पूर्णाहुति नारियल गोले को ऊपर से जरा सा काट कर पुरा शक्कर भर के फिर नारियल को पूर्ण करके लाल वस्त्र में लपेट कर  आहुति कर दें।


अंत मे कुंजिका स्तोत्र का पुनः एक पाठ करें।


देवी आरती कर के साधना को पूर्णता दें।


( यह सिद्ध कुंजिका का विशेष क्रम है जिसे किसी भी कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है।


-

कुंजिका स्तोत्र और कुछ आवश्यक नियम―

-

1)― साधना काल मे ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक है, केवल देह से ही नहीं अपितु मन से भी आवश्यक है।

-

2)― साधक भूमि शयन कर पाये तो उत्तम होगा।

-

3)― कुंजिका स्तोत्र के समय मुख में पान रखा जाये तो इससे मां प्रसन्न होती है। इस पान में चुना, कत्था और ईलायची के अतिरिक्त और कुछ ना डालें, कई साधक सुपारी और लौंग भी कुछ डालते हैं पर इतनी देर पान मुख में रहेगा तो सुपारी से जिह्वा कट सकती है तथा लौंग अधिक समय मुख में रहेगा तो छाले कर पैदा कर देते है, अतः ये दो वस्तु ना डालें।

-

4)― अगर नित्य कुंजिका स्तोत्र समाप्त करने के बाद एक अनार काटकर मां को अर्पित किया जाये तो इससे साधना का प्रभाव और अधिक हो जाता है, परन्तु ध्यान रहें यह अनार साधक को नहीं खाना चाहिए इसको नित्य प्रातः गाय को खिला देना चाहिए।

-

5)― यदि आपका रात्रि में कुंजिका का अनुष्टान चल रहा है तो नित्य प्रातः पूजन के समय किसी भी माला से 3 माला नवार्ण मंत्र की करें, इससे यदि साधना काल में आपसे कोई त्रुटि हो रही होगी तो वो त्रुटि समाप्त हो जायेगी। वैसे ये आवश्यक अंग नहीं है फिर भी साधक चाहें तो कर सकते हैं।

-

6)― साधना गोपनीय रखे गुरु तथा मार्गदर्शक के अतिरिक्त किसी अन्य को साधना समाप्त होने तक कुछ न बताएं, ना ही साधना सामाप्त होने तक किसी से कोई चर्चा करें।

-

7)― जहां तक सम्भव हो साधना में सभी वस्तुए लाल ही प्रयोग करें।

-

जब साधक उपरोक्त विधान के अनुसार कुंजिका को जागृत कर लें, तब इसके माध्यम से कई प्रकार के काम के प्रयोग किये जा सकते हैं। यहां कुछ प्रयोग दिये ज रहे है।

-

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के प्रयोग―

-

धन प्राप्ति―

-

किसी भी शुक्रवार की रात्रि में मां का सामान्य पुजन करें, इसके बाद कुंजिका के 9 पाठ करें इसके पश्चात, नवार्ण मन्त्र से अग्नि में 21 आहुति सफेद तिल से प्रदान करें। नवार्ण मंत्र में “श्रीं” बीज आवश्य जोड़े। “श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः स्वाहा”, आहुति के बाद पुनः 9 पाठ करें, इस प्रकार 9 दिनों तक करने से धनागमन के मर्ग खुलने लगते है।

-

शत्रु मुक्ति―

-

शनिवार रात्रि में काले वस्त्र पर एक निम्बू स्थापित करें तथा इस पर शत्रु का नाम काजल से लिख दें, और इस निम्बू के समक्ष ही सर्व प्रथम 11 बार कुंजिका का पाठ करें, इसके बाद “हुं शत्रुनाशिनी हुं फट” इस मन्त्र का 5 मिनट तक निम्बू पर त्राटक करते हुए जाप करें, फिर पुनः 11 पाठ करें, इसके बाद निम्बू कहीं भूमि में गाड़ दें, शत्रु बाधा समाप्त हो जायेगी।

-

रोग नाश―

-

नित्य कुंजिका के 11 पाठ करके काली मिर्च अभिमंत्रित कर लें, इसके बाद रोगी पर से इसे 7 बार घुमाकर घर के बाहर फेंक दें। कुछ दिन प्रयोग करने से सभी रोग शांत हो जाते है।

-

आकर्षण―

-

कुंजिका का 9 बार पाठ करें तत्पश्चात “क्लीं ह्रीं क्लीं” मन्त्र का 108 बार जाप करें तथा पुनः 9 पाठ कुंजिका के करें और जल अभीमंत्रित कर लें, इस जल को थोड़ा पी जाएं और थोड़े से मुख धो लें, सतत करते रहने से साधक में आकर्षण शक्ति का विकास होता हैं।

-

स्वप्न शांति―

-

जिन लोगों को बुरे स्वप्न आते है उनके लिए ये प्रयोग उत्तम है, किसी भी समय एक सिक्का लें और थोड़े काले तिल लें, 3 दिनों तक नित्य 21 पाठ कुंजिका के करें और इन्हे अभिमंत्रित करें, इसके बाद दोनों को एक लाल वस्त्र मे बांध कर तकिये के निचे रखकर सोये। धीरे-धीरे बुरे स्वप्न आना बन्द हो जायेंगे।

-

तंत्र सुरक्षा―

-

बुधवार के दिन एक लोहे कि कील लें और इसके समक्ष कुंजिका के 21 पाठ करें प्रत्येक पाठ की समाप्ति पर कील पर एक कुमकुम कि बिंदी लगाये इसके बाद इस कील को लाल वस्त्र मे लपेट कर घर के मुख्य द्वार के बाहर भूमि में गाढ़ दें, इससे घर तंत्र क्रियायों से सुरक्षित रहेगा।

-

उपरोक्त सभी प्रयोग सरल है परन्तु ये तभी प्रभावी होंगे जब आप स्वयं के लिए कुंजिका को जागृत कर लेंगे। अतः सर्वप्रथम कुंजिका को जागृत करें इसके बाद ही कोई प्रयोग करें।

लघु रुद्राभिषेक

लघु रुद्राभिषेक पूजा विधि                          लघु रूद्र पूजा (Rudrabhishek) का सामान्य सा अर्थ यही होता है कि शिव की ऐसी पूजा जो व्यक्त...