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शनिवार, 15 दिसंबर 2018

सुनेहला रत्न के लाभ – पुखराज का उपरत्‍न


सुनेहला रत्न के लाभ – पुखराज के उपरत्‍न बारे में नहीं जानते होंगे आप ये सब बातें
सुनेहला रत्न पीले रंग का नरम तथा पूर्ण पारदर्शक रत्न होता है। यह पुखराज का उपरत्‍न है और पुखराज गुरु ग्रह का रत्न है इसलिए इसे पहनने से गुरू से संबंधित सभी लाभ मिलते हैं, मान-सम्‍मान की प्राप्‍ति होती है, निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है और सामाजि‍क कार्यों में रूचि बढ़ती है।
sunehla-gemstone-benefits
सुनेहला रत्न के लाभ
धन में वृद्धि – आर्थिक तंगी का सामना कर रहे जातकों के लिए यह रत्न धारण करना बहुत ही लाभदायक होता है, यह रत्न धारण करने के बाद रुपए-पैसे से संबंधित सभी प्रकार की दिक्कते अपने आप समाप्त होने लगती है तथा घर में खुशहाली आती है।
मानसिक तनाव दूर होता है – आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर एक व्यक्ति मानसिक तनाव से गुजर रहा है, यही तनाव हमारे आर्थिक, शारीरिक और गृहस्थ जीवन पर अपना नकारात्मक प्रभाव डालता है। अगर ऐसी स्थिति से आप गुजर रहे है और मानसिक तनाव से छुटकारा पाना चाहते हो तो तुरंत सुनेहला धारण करे, लाभ अवश्य होगा।
उच्च शिक्षा में सहायक – हम सभी जानते है की जीवन में शिक्षा का कितना महत्व है, अगर आपको शिक्षा ग्रहण करने में किसी भी तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा हो या उच्च शिक्षा प्राप्ति में अडचने आ रही हो या पढाई में मन नहीं लग रहा हो या एकाग्रता की कमी महसूस हो रही हो तो बिना सोचे समझे तुरंत आप सुनेहला रत्न धारण कीजिये इसका शीघ्र ही शुभ फल आपको देखने को मिलेगा।
Rashi Gem Stones
लिवर और शुगर को कंट्रोल करता है – जो व्यक्ति लम्बे समय से लिवर से सम्बंधित बीमारी से ग्रस्त है, इलाज के बाद भी आराम नहीं मिल रहा हो उस व्यक्ति को यह रत्न अवश्य धारण करना चाहिए इसके अलावा जो व्यक्ति मधुमेह जैसी बीमारी से पीड़ित है या शुगर कंट्रोल में नहीं आ रही हो तो तुरंत सुनेहला रत्न धारण करना चाहिए लिवर और मधुमेह से सम्बंधित सभी दिक्कते आपने आप कम हो जायेंगी, इसलिए समय व्यर्थ न करते हुए सुनेहला रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।
sunela gemstone
किस राशि के जातक धारण करें?
वैदिक ज्‍योतिष के अनुसार सुनेहला रत्न गुरू से संबंधित है और यह धनु और मीन पर अधिकार रखता है इसलिए धनु और मीन राशि के जातकों के लिए यह रत्न लाभकारी होता है। पश्चिमी ज्‍योतिष के अनुसार यह धनु राशि वालों का बर्थ स्‍टोन है।
कहाँ से प्राप्‍त करें
श्री कालिका ज्योतिष केन्द्र अच्‍छे, प्राकृतिक और सिद्ध रत्‍न उन लोगों को पहुंचाने के उद्देश्‍य से ही काम कर रही है जिसे उनकी जरूरत है। हमारी पहली प्राथमिकता है कि जिसको रत्‍नों की जरूरत है उसको उसकी आवश्‍यकता और क्षमता के अनुसार बेहतर रत्‍न उपलब्‍ध कराया जाए। हम अच्‍छे, सर्टिफाइड और सस्‍ते रत्‍न लोगों तक पहुंचाते हैं जिससे सभी रत्‍नों के जादुई असर से अपना जीवन संवार सके। सेंथेटिक सुनेहला भी बाजार में बहुत अधिक मात्रा में है लेकिन ज्‍योतिष रेमिडी के लिए इसे श्रीकालिका ज्योतिष केन्द्र से ही लेना उचित है।
सुनेहला खरीदते समय सावधान रहना चाहिए क्‍योंकि जामुनिया को आग पर जला कर तैयार सुनेला जैसा पत्‍थर रत्‍न के रूप में बाजार में उपलब्‍ध है। अमेरिका, ब्राजील और साउथ अफ्रीका इसके बड़े उत्‍पादक है। रत्‍नों और जेम स्‍टोन के बढ़ते चलन के कारण हर ज्‍वेलर के पास यह रत्‍न मिल जाएगा लेकिन यह जरूरी नहीं हो कि वह प्राकृतिक हो क्‍योंकि लगभग सभी जेमस्‍टोन के सेन्‍थेटिक रूप तैयार किए जा सके हैं।
हमसे क्‍यों लें
इस रत्न को हमारे श्री कालिका ज्योतिष केंद्र के अनुभवी ज्योतिषी पंडित कृष्णा जोशी जी द्वारा अभिमंत्रित किया है जिससे यह आपको जल्‍द ही शुभ फल दे। इस रत्न के साथ सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा जो इस रत्‍न के ओरिजनल होने का प्रमाण है।
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सोमवार, 24 सितंबर 2018

राशि के अनुसार रत्न पहने

https://youtu.be/Ol6kwlzLH98               राशि के अनुसार रत्न पहने

राशि और उससे जुड़ा रत्न
किस राशि का कौनसा रत्न होता है | ग्रहों के बुरे प्रभाव के कारण मनुष्‍य को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वैसे तो ग्रहों की शांति के लिए कई उपाय बताए गए हैं लेकिन इस समस्‍या का चमत्‍कारिक हल रत्‍न द्वारा भी किया जा सकता है। हर राशि का अलग-अलग स्‍वभाव होता है वैसे ही प्रत्‍येक रत्‍न का भी हर राशि पर भिन्‍न प्रभाव पड़ता है।

राशि और उससे जुड़े रत्न

मेष राशि रत्न

मेष राशि के जातक अत्‍यंत क्रोधी स्‍वभाव के होते हैं। इससे प्रभावित जातक छोटी-छोटी बातों पर भी उतेजित हो जाते हैं। ये जिद्दी स्‍वभाव के भी होते हैं। मेष रा‍शि के जातकों को मूंगा अथवा गारनेट रत्‍न धारण करने से फायदा होता है। इस रत्‍न के प्रभाव में जातक का दिमाग शांत रहता है।

वृषभ राशि रत्न

वैसे तो वृषभ राशि के जातक धैर्यवान होते हैं लेकिन इनमें भावुकता की अधिकता होती है। स्‍वभाव से अत्‍यधिक भावुक होना ही इन जातकों की सबसे बड़ी कमी मानी जाती है। ये लोग किसी पर भी जल्‍दी भरोसा कर लेते हैं। इसलिए वृषभ राशि के जातकों को हीरा धारण करना चाहिए। हीरे के प्रभाव से वृषभ राशि के जातक बुरी संगत से दूर रहेंगें|

मिथुन राशि रत्न

मिथुन राशि के जातक आकर्षक और कला के प्रेमी होते हैं। इनका नेगेटिव प्‍वाइंट होता है कि इन्‍हें जीवन में सफलता ज़रा देर से मिलती है। यदि मिथुन राशि के जातक पन्ना धारण करें तो उसे अपने जीवन में सफलता प्राप्‍ति में सहयोग मिलता है।

कर्क राशि रत्न

कर्क राशि के जातक बुद्धिमान होते हैं लेकिन यह हठी स्‍वभाव के भी होते हैं। अपने जिद्दी स्‍वभाव के कारण कभी-कभी इन्‍हें नुकसान भी उठाना पड़ जाता है। कर्क राशि के जातकों को मोती पहनने से लाभ होता है। यह रत्‍न मन के विचारों को नियंत्रित कर उसे शांति प्रदान करता है।

सिंह राशि रत्न

सिंह राशि के जातक काफी उदार होते हैं लेकिन इन्‍हें अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है। छोटी-छोटी चीजें भी इन्‍हें काफी मेहनत के बाद नसीब होती हैं। ऐसे में अगर सिंह राशि के जातक माणिक्‍य, रेड ओपल या गारनेट धारण करें तो उन्‍हें अपने कार्यों में सफलता हासिल होती है।

कन्‍या राशि रत्न

जीवन में आई कठिनाइयों से निपटना कन्‍या राशि के जातक अच्‍छी तरह से जानते हैं। इन जातकों में कमी होती है कि यह काफी भावुक प्रवृत्ति के होते हैं। दूसरों के प्रति जल्‍दी आकर्षित हो जाते हैं। इनका चंचल स्‍वभाव ही इनकी सबसे बड़ी मुसीबत बन जाता है। अत: कन्‍या राशि के जातकों को पन्‍ना रत्‍न धारण करना चाहिए।

तुला राशि रत्न

तुला राशि के जातकों में विभिन्‍न खूबियां होती हैं। इन्‍हें कला से प्रेम होता है एवं पैसा कमाने के लिए ये सदैव उत्‍सुक रहते हैं। लेकिन ये जातक हमेशा दूसरों पर अपना वर्चस्‍व साबित करना चाहते हैं। ये काफी स्‍वार्थी भी होते हैं। अपनी नकारात्‍मकता को नियंत्रित करने के लिए तुला राशि के जातक ओपल, ब्‍लू डायमंड और टोपाज धारण कर सकते हैं।

वृश्चिक राशि रत्न

धैर्य और शांति का दूसरा नाम होते हैं वृश्चिक राशि के जातक। इन जातकों को जीवन में सफलता पाने के लिए जीतोड़ मेहनत करनी पड़ती है। खूब पसीना बहाने के बाद ही कामयाबी इनके हाथ आती है। यदि वृश्चिक राशि के जातक मूंगा धारण करें तो इनके द्वारा किए गए प्रयासों से जल्‍दी सफलता पाई जा सकती है। मूंगा के प्रभाव में ये जातक अपने लक्ष्‍य को प्राप्‍त कर पाएंगें।

धनु राशि रत्न

धनु राशि के जातक दिखने में मजबूत और शक्तिशाली होते हैं। कार्य को तेजी से करते हैं लेकिन कार्य पूरा किए बिना दूसरों के ऊपर कार्य सौंप कर उस काम से हट जाते हैं। इस राशि के जातकों को पुखराज धारण करना शुभ होगा यह उनके भाग्य की वृद्धि में सहायक होगा।

मकर राशि रत्न

मकर राशि के जातक सदा दूसरों की सहायता के लिए तत्‍पर रहते हैं। इन जातकों के जीवन में परिश्रम और चिंता अधिक होती है। परिवार से भी इन्‍हें सहयोग नहीं मिल पाता। इनका भाग्य देर से जागता है इसलिए मेहनत का फल भी देर से मिलता है। मकर राशि का स्‍वामी शनि ग्रह है इस‍लिए मकर राशि वाले जातकों को नीलम रत्‍न धारण करना चाहिए।

कुंभ राशि रत्न

ये जातक ज्ञान का भंडार होते हैं। लेकिन इनका आत्‍मविश्‍वास काफी कमजोर होता है। ये शारीरिक रूप से भी कमजोर होते हैं। इस राशि का शुभ रत्‍न नीलम है।

मीन राशि रत्न

मीन राशि के जातक जीवन के प्रति काफी उत्‍साहित रहते हैं। इनका स्‍वास्‍थ्‍य ज्‍यादा अच्‍छा नहीं रहता। इन्‍हें पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है। पुखराज इस राशि के लिए शुभ रत्‍न माना जाता है |

                          "जय माता दी"
                      "जय शमशान भैरव"

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बुरी नज़र उतारने के टोटके

जय माता दी
जय शमशान भैरव

                 बुरी नज़र उतारने के टोटके


आज सभी जगह देखने को मिला है कि किसी भी हिन्दू  महिला के  छोटे बचे की हालत बिगड़ जाए तो वो उसे लेकर मजीद कर बाहर  चली जाती है और वहां भिखारियों की तरह खड़ी रहते। पर हमारे धर्म से जो सीके है उनके। यह क्यों हात फेलाना तो  इसके टोटके जो सिद्ध होए हुवे है उसे अपनाए
1  जिस बचे की तबियत खराब है उसको गर के मेंन गेट के यहां  उसको लेकर उसके ऊपर पीली सरशो   नमक  लाल मिर्च आकि वाली लेकर 21 बार उतारे ओर हर एक उतारे के सात  ॐ हनुमते कष्ट हराये फट स्वहा ।।। बोलना है और उस सभी सामग्री को  जलती हुहि अग्नि में ॐ फट जोर से बोलकर उसमे डाले  और। जैसे ही वो सामग्री जली ओर आपका  बचा  बिल्कुल सही

2।। साम को 6  से 7,15  सात के बीच  मेंन गेट के यहां  एक तो नारियल 5  रुपये की सिंदूर  अगरबती लेकर  उसके ऊपर वारे  ओर हनुमानजी के मंदिर में हनुमानजी के पीछे रख दे

3।।बचे को मेंन दरवाजे पर खड़ा कर या उसको वहां पर  लेकर उसके ऊपर गंगा जल या पानी का  छिड़काव करें उसके बाद उसके सिर पर अक। नीबू काटे उसको इस तरह फेके की जैसे नीबू को जोड़े तो वो जुड़े नही अर्थात उल्टा कर के। फेंके ऐसे ही 5 नीबू काटने है और दरवाजे जे यह काली सिगरेट  जलाके रख दे और नीबू काटते समय ॐ श्मशानी भैरव नमः  ये मन्त्र बोले

तिलक वशीकरण

"जय माता दी"

        ★सफेद आक के पौधे से तिलक वशीकरण★  

रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र का सहयोग होने पर इस पौधे की जड़ ले आए गाय का घी गोरोचन के साथ इस जल को मिलाकर लेप बनाए तथा माथे पर तिलक लगावे इस तिलक को लगाने वाले के प्रभाव में लोग तो क्या
त्रिलोक भी आ जाता है तथा सर्वजन वशीकरण होता है |
         
             🕎🕉️🚩जय माता दी🚩🕉️🕎
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संतान प्राप्ति का तांत्रिक उपाय

संतान प्राप्ति का तांत्रिक उपाय

आज के वैज्ञानिक युग में जहां विज्ञान संतानोत्पत्ति के लिए किराए की कोख व टेस्ट ट्यूब बेबी प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है वहीं प्राचीन भारतीय संस्कृति के यंत्र तंत्र मंत्र आज भी उतने ही कारगर हैं जितने कि पहले होते थे।
मंत्र: ऊँ ह्रां ह्रीं हू्रं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा



इस षोडशाक्षर मंत्र का ध्यान, न्यास आदि नहीं है। वसंत ऋतु से प्रारंभ करके दस हजार जप आम के वृक्ष पर चढ़कर करें। मंत्र जप से पहले स्नान, नित्यकर्मादि कर लेने चाहिए। यह प्रयोग करने के दो माह या दो ऋतुकाल होने पर भी गर्भस्थिति न हो तो फिर से करना चाहिए।

मृतवत्सा यंत्र: यह यंत्र रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य, सर्वार्थसिद्धि अमृतसिद्धि योगों में अनार की कलम से गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर गुग्गुल की धूनी देकर स्त्री गर्भवती स्थिति में या वैसे ही गले में धारण कर लें। यह यंत्र सोने, चांदी या तांबे के ताबीज में रखकर पहना जा सकता है। लिखने के बाद इसे कुछ समय तक एकाग्र मन से श्रद्धा भक्ति पूर्वक देखते रहना चाहिए। वंध्या निवारक यंत्र को धारण करने से स्त्री गर्भवती होती है इस यंत्र को अनार की कलम और अष्टगंध की स्याही से भोज पत्र पर किसी शुभ मुहूर्त में पवित्रतापूर्वक अत्यंत धैर्य से 108 बार लिखें। इनकी पंचोपचार पूजा करें। और पुत्र की कामना कर अपने इष्ट देव के इष्ट मंत्र की एक माला जप करें। यह क्रम लगातार 30 दिन अर्थात एक माह तक चलता रहे। पहला दिन पहला यंत्र लिख कर एक विशेष प्रकार से रखें जिससे उसकी पहचान हो जाए। इस तरह 3241 यंत्र तैयार हो जाएंगे। अंतिम दिन सभी यंत्रों की पूजा करें। इष्ट मंत्र का 3240 बार जप करें। 3240 मंत्र हवन करें। 324 मंत्र तर्पण करें। 3 मंत्र मार्जन करें और ब्राह्मण को भोजन कराएं । उसके बाद पहले दिन यंत्र को तांबे के यंत्र या लाल वस्त्र में लपेट कर गले में धारण करें। यंत्र इस प्रकार लगा रहे कि गर्भाशय से स्पर्श करता हो। शेष 3240 यंत्र आटे में गूंध कर गोलियां बना लें और उन्हें जल में विसर्जन कर दें। यदि जलाशय नहीं हो तो पीपल के जड़ में रख दें। अगर किसी स्त्री का गर्भपात हो जाता हो तो यंत्रको धारण करें। किसी रवि-मूल योग में इस यंत्र को अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से भोजपत्र पर लिखें।

"जय माता दी"
         
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रोग जाड़ने का अघोर शाबर मन्त्र


रोग जाड़ने का अघोर शाबर मन्त्र


“ॐ नमो आदेश गुरु । घोर-घोर, काजी की कुरान घोर, मुल्ला की बांग घोर, रेगर की कुण्ड घोर, धोबी की चूण्ड घोर, पीपल का पान घोर, देव की दीवाल घोर । आपकी घोर बिखेरता चल, पर की घोर बैठाता चल । वज्र का कीवाड़ जोड़ता चल, सार का कीवाड़ तोड़ता चल । कुण-कुण को बन्द करता चल-भूत को, पलीत को, देव को, दानव को, दुष्ट को, मुष्ठ को, चोट को, फेट को, मेले को, धरले को, उलके को, बुलके को, हिड़के को, भिड़के को, ओपरी को, पराई को, भूतनी को, डंकनी को, सियारी को, भूचरी को, खेचरी को, कलुवे को, मलवे को, उन को, मतवाय को, ताप को, पीड़ा को, साँस को, काँस को, मरे को, मुसाण को । कुण-कुण-सा मुसाण – काचिया मुसाण, भुकिया मुसाण, कीटिया मुसाण, चीड़ी चोपड़ा का मुसाण, नुहिया मुसाण – इन्हीं को बन्ध कर, ऐड़ो की ऐड़ी बन्द कर, जाँघ की जाड़ी बन्द कर, कटि की कड़ी बन्द कर, पेट की पीड़ा बन्द कर, छाती को शूल बन्द कर, सर की सीस बन्द कर, चोटी की चोटी बन्द कर । नौ नाड़ी, बहत्तर रोम-रोम में, घर-पिण्ड में दखल कर । देश बंगाल का मनसा राम सेबड़ा आकर मेरा काम सिद्ध न करे, तो गुरु उस्ताद से लाजे । शब्द सांचा, पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र , ईश्वरो वाचा ।”

विधि व फलः-

रविवार के दिन सायं-काल भगवान् शिव के मन्दिर में जाकर सुगन्धित तेल का दीपक जलाकर लोबान-गूगल का धूप करें और नैवेद्य अर्पित करें । किसी धूणे या शिव-मन्दिर के साधु को गाँजे या तम्बाकू से भरी एक चिलम भेंट करें । तदुपरान्त मन्त्र का २७ बार जप करे । यह जप २७ दिनों तक नियमित रुप से करना चाहिए । फिर आवश्यकता पड़ने पर अर्थात् मन्त्र में वर्णित कोई रोग-बाधा दूर करने हेतु पीड़ित व्यक्ति को लोहे की छुरी या मोर-पंख से सात बार मन्त्र पढ़ते हुए झाड़ना चाहिए । इससे रोगी का रोग शान्त होता है । यह क्रिया तीन दिन तक प्रातः और सायं-काल करने से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है ।

"जय माता दी"
           
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रात्रि में बजरंग बाण पाठ करने की विधि जो तंत्र कार्य करती है

रात्रि में बजरंग बाण पाठ करने की विधि जो तंत्र कार्य करती है:-
आज के समय में हर मनुष्य किसी न किसी परेशानी से घिरा हुआ है | हर समाधान के बाद भी उसे कोई हल नही मिलता | पूजा -पाठ करने के बाद भी अभिष्ठ फल की प्राप्ति नही हो पाती है | पूजा – पाठ की भी एक विधि होती है अगर पूजा-पाठ विधि अनुसार नही की जाती है तो उसका फल आपको मिलता तो है किन्तु बहुत प्रयत्न के बाद मिलता है |

आज हम आपको हनुमान जी के बजरंग बाण के रात्रि में किये जाने वाले पाठ के विषय में बता रहे है | वैसे तो बजरंग बाण का नियमित रूप से पाठ आपको हर संकट से दूर रखता है | किन्तु अगर रात्रि में बजरंग बाण को इस प्रकार से सिद्ध किया जाये तो इसके चमत्कारी प्रभाव तुरंत ही आपके सामने आने लगते है | अगर आप चाहते है अपने शत्रु को परास्त करना या फिर व्यापर में उन्नति या किसी भी प्रकार के अटके हुए कार्य में पूर्णता तो रात्रि में बजरंग बाण पाठ को अवश्य करें |

विधि इस प्रकार है : –
किसी भी मंगलवार को रात्रि का 11 से रात्रि 1 बजे तक का समय सुनिश्चित कर ले | बजरंग बाण का पाठ आपको 11 से रात्रि 1 तक करना है | सबसे पहले आप एक चौकी को पूर्व दिशा की तरफ स्थापित करें अब इस चौकी पर एक पीला कपडा बिछा दे | अब आप इस मंत्र को एक कागज पर लिख कर इसे फोल्ड करके इस चौकी पर रख दे | मंत्र इस प्रकार है : “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ” ||


अब आप चौकी के दायें तरफ एक मिटटी के दिए में घी का दीपक जला दे | आपको इस चौकी के सामने आसन पर बैठ जाना है | इस प्रकार आपका मुख पूर्व दिशा कर तरफ हो जायेगा और दीपक आपके बाएं तरफ होगा | अब आप परमपिता परमेश्वर का ध्यान करते हुए इस प्रकार बोले : – हे परमपिता परमेश्वर मै(अपना नाम बोले ) गोत्र (अपना गोत्र बोले ) आपकी कृपा से बजरंग बाण का यह पाठ कर रहा हु इसमें मुझे पूर्णता प्रदान करें | अब आप ठीक 11 बजते ही इस मंत्र का जाप शुरू कर दे ” ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ” इस मंत्र को आप 5 मिनट तक जाप करें, ध्यान रहे मंत्र में जहाँ पर फट शब्द आता है वहा आप फट बोलने के साथ -साथ  2 उँगलियों से दुसरे हाथ की हथेली पर ताली बजानी है |

अब आप 11 बजकर 5 मिनट से और रात्रि 1 बजे तक लगातार बजरंग बाण का पाठ करना प्रारंभ कर दे | ध्यान रहे बजरंग बाण पाठ आपको याद होना चाहिए | किताब से पढ़कर बिलकुल न करें |  जैसे ही 1 बजता है आप बजरंग बाण के पाठ को पूरा कर अब आप फिर से इस मंत्र ” ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ” का जाप 5 मिनट तक करें | अब आप कागज  पर   लिखे हुए मंत्र को जला दे | इस प्रकार आपका यह बजरंग बाण का पाठ एक ही रात्रि में सिद्ध हो जाता है |

"जय माता दी"
         
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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

💀💀💀तांत्रिक साधना💀💀💀



💀💀💀: तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी. वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है. वाम मार्गी तंत्र साधना में छह प्रकार के कर्म बताये गये हैं, जिन्हें षट कर्म कहते हैं.
                                                                                                                                                                                                                                                                        शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा.
गोरणों तनिसति षट कर्माणि                                                                                  
  अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण. ये छह तांत्रिक षट कर्म बताये गये हैं. 
इनके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन भी है :
                                                                                                                                मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्.
आकर्षण यिक्षणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥

मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यिक्षणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं.

रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शिन्तर किता.
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्.
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्.

जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाये, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तंभन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं.

* मंत्र साधना : मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है. मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है. मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना. मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है. मंत्र साधना भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है.
* मुख्यत: तीन प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र  2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र.
* मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप.
वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है. मानस जप का अर्थ है मन ही मन जप करना. उपांशु जप में जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनायी देती. बिल्कुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है.

* मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण. दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ पहले से लेना चाहिए. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाये. प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है.
किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए. इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है. जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए.

* यंत्र साधना : यंत्र साधना सबसे सरल है. बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखने पर  अपने आप कार्य सफल होते जायेंगे. यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं. यंत्र को दो प्रकार से बनाया जाता है - अंक द्वारा और मंत्र द्वारा. यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं. श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं.
इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनायी जाती हैं. इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है. इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है.
यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाये जाते हैं  जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाये जाते हैं.

* दिशा: प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं. धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं. वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं. इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है.

* योग साधना : सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गयी है योग साधना. यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है. इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं. योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है.  योगिश्चत्तवृत्तिनिरोध:
मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है. इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है. उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं. योग साधना द्वारा अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है. सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है.

* जब सिद्धियों के सबसे करीब होते हैं साधक
दीपावली की रात विधिपूर्वक भोजपत्र, रजत, स्वर्ण या ताम्रपत्र पर निम्न यंत्र बनाकर मंत्र का जप करने से अभीष्ट सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं. कार्तिक अमावस्या की रात का सिद्धि के लिए विशेष महत्व है. इस कार्य के लिए निश्चित काल या अर्धरात्रि में स्थिर लग्न में निम्न यंत्रों की सिद्धि की जा सकती हैं. कहते हैं, कार्तिक अमावस्या की रात में समस्त किस्म की सिद्धियां साधकों के सबसे करीब होती हैं, बशर्ते उन्हें विधिवत सिद्ध किया जाये.
इस दिन श्री लक्ष्मी जी का विधिपूर्वक पूजन कर कमलगट्टे की माला से निष्ठापूर्वक नीचे दिये गये मंत्र का 11 या 21 हजार बार जप कर दशमांश हवन व उसके पश्चात कन्याओं को भोजन कराने से श्री लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है - ऊं श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री ऊं महालक्ष्म्यै नम:. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मंत्र: ऊं ह्रीं श्री घंटाकर्णी नमोस्तुते ठ: ठ: ठ: स्वाहा. या ऊं लक्ष्मी वं श्री कमला धारं स्वाहा. यह घंटाकर्ण लक्ष्मी प्राप्ति का मंत्र है. इस मंत्र का 11 माला जप नियमित रूप से करने से लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. घंटाकर्ण लक्ष्मी की पूजा लाल फूल, लड्डू, नारियल आदि से की जाती है.

लक्ष्मी चामर मंत्र: ऊं ह्रीं महालक्ष्मी ऊं ह्रीं. इस मंत्र का केवल पांच माला जप नियमति रूप से करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र अथवा बीसा यंत्र का पंचामृत स्नान आदि कराकर पूजन करना चाहिए. फिर नीचे दिये गये मंत्र का 21 हजार या सवा लाख जाप करना चाहिए. इससे श्री गणेश व लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है- ऊं नमो विघ्न राजाय सर्व सौख्य प्रदायिने, दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परात्मने.लंबोदरं महावीर्यम् नागयज्ञोप शोभितम्. अर्धचंद्र धरं देवं विघ्न व्यूह विनाशनम्. ऊं ह्रां ह्रीं ह्रैं ह्रौं ह्र: हेरम्बाय नमोनम:. सर्विसद्धि प्रदोसि त्वं सिद्धि-बुद्धि प्रदोभव:. चिंतितार्थ प्रवस्विहसततं मोदक प्रिय:. सिंदूरारूणवरभ्रैश्च पूजितो वरदायकम्. इह गणपति स्तोत्र च पठेद भिक्त भाव नर:. तस्यदेहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मूच्चित.
दीपावली पर यह मंत्र सिद्ध कर रोज एक माला जप करने से धन, स्वास्थ्य व सुयश की प्राप्ति होती है. बेरोजगारों को रोजगार मिलता है और व्यापारियों को व्यापार में लाभ होता है. कुबेर यंत्र व श्री कुबेर जी का इस रात्रि विधिवत पूजन तथा निम्न मंत्र का 11 या 21 हजार अथवा सवा लाख जपकर, फिर प्रतिदिन नियमानुसार जप करने से आर्थिक स्थिति में सुधार  होता है : ऊं श्रीं ऊं श्रीं क्लीं श्रीं क्लीं विश्रेश्वराय नम:.

* कनकधारा यंत्र: कनकधारा यंत्र का नियमानुसार पूजन कर कनकधारा स्तोत्र व मंगल ऋणहर्श्रा स्तोत्र का पाठ करने से दुर्गा माता की कृपा से धन की चिंता दूर होती है या कर्ज से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही उधार दिया गया धन भी मिल जाता है.

* पुत्र-प्राप्ति यंत्र : इस यंत्र का पूजन व संतानप्रद गणपति स्तोत्र या संतान गोपाल मंत्र का जप व हरिवंश पुराण का पाठ करने से मनोनुकूल संतान की प्राप्ति होती है.

* प्रेतबाधा निवारण यंत्र : इस यंत्र के साथ हनुमान जी या भैरव जी का पूजन कर हनुमत कवच तथा बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ करने से भूत-प्रेत आदि से मुक्ति मिलती है. संकट, ज्वर, ग्रह व शत्रु कष्ट निवारण यंत्र इस यंत्र का पूजन कर महामृत्युजंय मंत्र का जाप, संकटनाशन गणोश स्तोत्र और श्रीसूक्त का पाठ करने से अभीष्ट की सिद्धि हो सकती है.

* मामले-मुकदमे में जीत के लिए : दिवाली की रात इस यंत्र को भोजपत्र पर नीम की कलम से लिखकर धूप, दीप, गंधादि से पूजना चाहिए. इसके पश्चात निम्नलिखित मंत्र का 31 माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है.
मंत्र: ऊं नीली-नीली-महानीली (शत्रु पक्ष/जज का नाम) जीभि तालू सर्व खिली, सही खिलो तत्क्षणाय स्वाहा.

* धनप्रदाता सिद्ध बीसा यंत्र : दीपावली की रात को इस यंत्र को चांदी या स्वर्ण के पत्र पर उत्कीर्ण करवा कर धूप, दीप, अक्षत गंध आदि से इसकी पूजा करनी चाहिए. फिर महालक्ष्मी और गणोश को लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए और लाल फूलों से उसे पूजना चाहिए. फिर निम्नलिखित मंत्र की 21 मालाएं जप कर यंत्र को तिजोरी में रख देना चाहिए. 21 दिन लगातार देसी घी का दीपक श्रीं महालक्ष्मी के सामने जलाना चाहिए. अगर यंत्र को जेब में रखना हो, तो उसे भोजपत्र पर बनाना चाहिए.
मंत्र: ऊं  ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय-पूरय चिंतायै दूरय-दूरय स्वाहा.

* सेवक वशीकरण पिशाच यंत्र : धनी लोगों को उनके सगे संबंधी, नौकर, सेवक आदि हर प्रकार की हानि पहुंचाने की चेष्टा करते हैं, ताकि धन हड़प सकें. अगर किसी धनी व्यापारी को किसी पर भी ऐसा संदेह हो, तो दिवाली, सूर्य-ग्रहण आदि में इस यंत्र को भोजपत्र पर अनार की कलम, अष्टगंध या गोरोचन से बना लें और पूजा करने के उपरांत दही में डालकर रख दें. यूं वह व्यक्ति कोई हानि नहीं पहुंचायेगा और सदा आज्ञा पालन करेगा.

* श्रीनारायण बीसा यंत्र : नरक चौदस या दिवाली को प्रात:काल कुश के आसन पर बैठकर भोज पत्र पर तुलसी की कलम या सोने अथवा चांदी के शलाका से केसर युक्त चंदन की स्याही से श्री नारायण बीसा यंत्र की रचना करें. शुद्ध घी के आठ दीपक जलाकर यंत्र को आठ पुष्प अर्पित करें. यंत्र पूजन के पश्चात पुत्र प्राप्ति ऊं नमो नारायणाय मंत्र की आठ माला जप करें. फिर यथाशक्ति श्री विष्णु सहस्रनाम या पुरुषसूक्त का एक पाठ करें. इस विधि से सिद्ध श्री नारायण बीसा यंत्र को घर की तिजोरी, दुकान या फैक्टरी के गल्ले में रखें अथवा ताबीज में भरकर गले में धारण करें. श्री नारायण बीसा यंत्र के प्रयोग से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. श्री विष्णु की प्रसन्नता से घर में श्री लक्ष्मी का वास स्वत: हो जाता है. यंत्र प्रभाव से शत्रुभय व रोगादि का निवारण होता है और जीवन समृद्ध हो जाता है.

* कुबेर बीसा यंत्र : दीपावली के दिन प्रदोष काल में यह यंत्र घी और सिंदूर मिलाकर व्यापार स्थल की दीवार पर (पूर्व या उत्तर दिशा में) श्री धनाध्यक्षाय नम: का उच्चारण करते हुए बनाएं. फिर पुष्प, चंदन, धूप और दीप से इसका पूजन करें. प्रतिदिन इस यंत्र का पूजन करके व्यापार प्रारंभ करने से व्यापार में वृद्धि और धनलाभ होता है.
ऋण से मुक्ति हेतु दिवाली की रात में एक लाल अथवा नारंगी रंग के कागज पर रक्त चंदन तथा रोली के घोल व चमेली की कलम से यह यंत्र अंकित कर लें. अब गणपति जी के भव्य रूप का ध्यान करते हुए उनकी धूप, दीप तथा रक्त पुष्प से पूजा-अर्चना करें. फिर गणपति जी को दूब चढ़ायें. गणपति जी को दूब चढ़ाने का विशेष महत्व है. अंत में उक्त यंत्र भी गणपति जी के चरणों में अर्पित करके श्री गजानन, जय गजानन मंत्र की एक माला का जाप करें. पूजा की समाप्ति के बाद यंत्र को मोड़कर तांबे के ताबीज में बंद कर लें तथा इसे सदा अपने पास रखें. उक्त मंत्र की नित्य एक माला जपकर गणपति जी से कर्ज मुक्ति की प्रार्थना श्रद्धाभाव से करते रहें. कोई भी निष्ठावान व्यक्ति इस प्रयोग से लाभ उठा सकता है.

* धनदा यक्षिणी यंत्र : धनतेरस के दिन संभव हो, तो एक दक्षिणावर्ती शंख खरीद लें. शंख ना हो, तो किसी धातु का एक पात्र रख लें. काठ के पटरे पर अथवा घर में उपलब्ध किसी स्वच्छ थाली में हल्दी के घोल से रतिप्रिया धनदा यक्षिणी यंत्र चित्रनुसार अंकित कर लें. उस पर उक्त शंख पात्र को स्थापित कर दें. शंख का पूंछ वाला अर्थात नुकीला भाग सदैव उत्तर-पूरब दिशा में रहना चाहिए. धनतेरस से दीपावली तक एक समय निश्चित करके निम्न दो मंत्रों में से एक अथवा दोनों मंत्रों की 11 माला का जाप नित्य करें : 1. ऊं  श्री महालक्ष्म्यै नम: 2. ऊं श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम: हर जप के बाद नागकेसर मिश्रित चावल थोड़े-थोड़े करके शंख अथवा पात्र में छोड़ें. अगले दो दिन इन्हीं चावलों को पुन: 11 माला जप कर शंख में छोड़ें. दिवाली की पूजा में इस शंख को रख पूजा कर लें और फिर पूजा अथवा कार्य स्थल पर किसी शुद्ध स्थान पर रख दें. इसमें श्रीफल, एक कौड़ी तथा चांदी का एक सिक्का रखकर लाल कपड़े से ढ़क दें. नित्य मंत्र का जाप करते रहें. पूरे वर्ष लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी.
दिवाली पूजा में रखा चांदी का सिक्का भी इस शंख अथवा पात्र में स्थापित कर सकते हैं. एक अन्य यंत्र दिवाली को हनुमान जी पर चढ़ने वाला सिंदूर व गाय का शुद्ध घी लेकर घोल बना लें. इस घोल से अपने कार्य स्थल, पूजा स्थलादि की उत्तर अथवा पूरब मुखी दीवार पर साथ दिया यंत्र अंकित कर लें. यदि दुकान आदि में मूल्यवान सामग्री की कोई अलमारी अथवा तिजोरी हो, तो उसके पृष्ठ भाग में भी यह यंत्र अंकित कर सकते हैं.



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शुक्रवार, 9 मार्च 2018

भूत-प्रेत बाधा निवारण के सरल उपाय...



भूत-प्रेत बाधा निवारण के सरल उपाय...
भूत-प्रेत बाधा : पहचान और निदान......

अक्सर सुनने में आता है कि उसके ऊपर भूत आ गया है या उसको प्रेत ने पकड़ लिया है जिसक कारण उसके घर वाले बहुत परेशान हैं। उसको संभाल ही नहीं पाते हैं। तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाकर भी कुछ नहीं हुआ है। समझ नहीं आता है क्या करें..???
केसे जाने की भूत-प्रेत बाधा है या नहीं..??
आप अपनी या किसी की कुण्डली देखें और यदि ये योग उसमें विद्यमान हैं तो समझ लें कि जातक या जातिका भूत-प्रेत बाधा से परेशान है।
भूत-प्रेत बाधा के योग इस प्रकार हैं-
पहला योग-कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती हैं।
दूसरा योग-यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं।
तीसरा योग-यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। उक्त योगों में दशा-अर्न्तदशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान है।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है :
''अजैकपादहिर्बुध्न- ्यषक्रमित्रानिला��- �्तकैः।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्य��- �म॥
भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।
भूत पीड़ा :
भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है।
यक्ष पीड़ा :
यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है।
पिशाच पीड़ा :
पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है।
शाकिनी पीड़ा :
शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है।
प्रेत पीड़ा :
प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है।
चुडैल पीड़ा :
चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है।
भूत प्रेत कैसे बनते हैं:- इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है
मन की पवित्रता, पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ श्री हनुमानजी की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर निम्न मन्त्र को सिद्ध करके भोजपत्र पर लाल चन्दन या लाल रंग की स्याही से लिखकर रोगी को ताबीज में धारण करा देना चाहिए। 

मंत्र यह है
ॐ हां हीं हूं हौं हः सकल भूतप्रेत दमनाय स्वाहा
यह इन बाधाओं को रोकने का बड़ा ही सरल और चमत्कारी उपाय है
जय माता दी 
सम्पर्क सूत्र 9462012134

बुधवार, 7 मार्च 2018

jay mata di


" जय माता दी "
 कोई भी परेशानी हो गारेण्टेट समाधान :---

क्या आप इन #समस्याओ से परेशान है?
#नौकरी मे तरक्की न होना,
कारोबार मे #घाटा ,#कारोबार का ना चलना ,#प्रेम विवाह,#शादी मे देरी ,#वैवाहिक जीवन मे #क्लेश,
#औलाद का ना होना,या बिगड़ जाना,
#विदेश #यात्रा मे विघ्न,#कर्जा,
#रोग ,#ग्रह क्लेश, #कोर्ट कचहरी , #अपना घर न #होना, #वशीकरण, #मांगलिक,#पितृदोष,
#काल सर्प दोष,
बनते #काम बिगड़ जाना, #नुकसान होना,#किया -#कराया आदि
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#ज्योतिष विद्या और #तन्त्र, #मंत्र, #यंत्र विद्या द्वारा
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कुण्डली के कुछ अशुभ योगों की शान्ति


          "जय माता दी"
कुण्डली के कुछ अशुभ योगों की शान्ति

1).चांडाल योग -

गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक बुजुर्गों का एवम् गुरुजनों का निरादर करता है ,मोफट होता है,तथा अभद्र भाषा का प्रयोग करता है.यह जातक पेट और श्वास के रोगों से पीड़ित हो सकता है

2).सूर्य ग्रहण योग -

सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो जातक को हड्डियों की कमजोरी, नेत्र रोग, ह्रदय रोग होने की संभावना होती है ,एवम् पिता का सुख कम होता है

3). चंद्र ग्रहण योग -

चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक को मानसिक पीड़ा एवं माता को हानि पोहोंचति है

4).श्रापित योग –

शनि के साथ राहु हो तो दरिद्री योग होता है सवा लाख महा मृत्युंजय जाप करें.

5).पितृदोष- 

यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है.

6).नागदोष – 

यदि जातक को 5 भाव में राहु बिराजमान है तो जातक

पितृदोष के साथ साथ नागदोष भी है.

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7).ज्वलन योग-

 सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो

जातक ज्वलन योग(अंगारक योग) से पीड़ित होता है।

8).अंगारक योग-

मंगल के साथ राहु या केतु बिराजमान हो तो जातक

अंगारक योग से पीड़ित होता है.।

9).सूर्य के साथ चंद्र हो तो जातक अमावस्या का जना है

(अमावस्या शान्ति करें).

10).शनि के साथ बुध - प्रेत दोष.

11).शनि के साथ केतु - पिशाच योग.

12).केमद्रुम योग-

चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगे पीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले ही करना पड़ता है.

13).शनि + चंद्र - विषयोग शान्ति करें।

14).एक नक्षत्र जनन शान्ति -
घर के किसी दो व्यक्तियों का एक ही नक्षत्र हो तो उसकी शान्ति करें.

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15).त्रिक प्रसव शान्ति- तीन लड़की के बाद लड़का या तीन लड़कों के बाद लड़की का जनम हो तो वह जातक सभी पर भारी होता है।

16).कुम्भ विवाह - लड़की के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु।

17).अर्क विवाह - लड़के के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु।

18).अमावस जन्म- अमावस के जनम के सिवा कृष्ण चतुर्दशी या प्रतिपदा युक्त अमावस्या जन्म हो तो

भी शान्ति करें।

19).यमल जनन शान्ति - जुड़वा बच्चों की शान्ति करें।

20).पंचांग के 27 योगों में से 9

“अशुभ योग”

1.विष्कुंभ योग.

2.अतिगंड योग.

3.शुल योग.

4.गंड योग.

5.व्याघात योग.

6.वज्र योग.

7.व्यतीपात योग.

8.परिघ योग.

9.वैधृती योग.

21).पंचांग के 11 करणों में से 5

“अशुभ करण”

1.विष्टी करण.

2.किंस्तुघ्न करण.

3.नाग करण.

4.चतुष्पाद करण.

5.शकुनी करण.

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22).शुभाशुभ नक्षत्र

प्रत्येक की अलग अलग संख्या उनके चरणों को संबोधित करती है

जानिये नक्षत्र जिनकी शान्ति करना जरुरी है।

1).अश्विनी का- पहला चरण.अशुभ है।

2).भरणी का – तीसरा चरण.अशुभ है।

3).कृतीका का – तीसरा चरण.अशुभ है।

4).रोहीणी का – पहला,दूसरा और तीसरा चरण अशुभ है।

5).आर्द्रा का – चौथा चरण अशुभ है।

6).पुष्य नक्षत्र का – दूसरा और तीसरा चरण. अशुभ है।

7).आश्लेषा के-चारों चरण अशुभ है।

8).मघा का- पहला और तीसरा चरण अशुभ है.।

9).पूर्वाफाल्गुनी का-चौथा चरण अशुभ है।

10).उत्तराफाल्गुनी का- पहला और चौथा चरण अशुभ है।

11).हस्त का- तीसरा चरण अशुभ है।

12).चित्रा के-चारों चरण अशुभ है।
13).विशाखा के -चारों चरण अशुभ है।
14).ज्येष्ठा के -चारों चरण अशुभ है।
15).मूल के -चारों चरण अशुभ है।
16).पूर्वषाढा का- तीसरा चरण.अशुभ है।
17).पूर्वभाद्रपदा का-चौथा चरण अशुभ है।
18).रेवती का – चौथा चरण अशुभ है।

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